इंद्रजाल – एक अनोखी कहानी – भाग ५ | तांत्रिक की कहानी – भाग ५ | Indrajal – A Unique Story – Part 5 | Story of Tantrik – Part 5
“परतापुर में विमला की शादी की बात चल रही थी।” रामगोपाल असाटी बोले, “वह जगह कुंडाली से तीन कोस पर है । लड़का शराबी और बदचलन था, इसलिए हमने संबंध तोड़ दिया।”
“तभी ।“
दादू की आंखें चमकीं, “वे पिशाच परतापुर वालों ने ही कुंडाली जाकर भिजवाए होंगे । आपने संबंध तोड़ दिया, इससे उनकी बड़ी किरकिरी हुई होगी।”
अपने साथ बड़ा-सा झोला लेकर आये थे मधुसूदन हालदार । उसमें से बंदर का वही सूखा हुआ पंजा निकाला उन्होंने । फिर रेड़ी के तेल से जलने वाला तोते के मुंह वाला पीतल का लैंप । एक पुड़िया भी झोले से निकाली उन्होंने फिर बोले, “गाय का घी लाओ ।“
घी जब आया, उन्होंने वह पुड़िया खोली । उसमें सिंदूर था । उसमें घी डालकर उसका लेप उन्होंने बंदर के पंजे पर करना शुरू किया । थोड़ी देर बाद जब वह सिंदूर सूख गया तो बंदर का पंजा किसी आइने की तरह चमचमाने लगा ।
“इसकी तरफ गौर से देखो बेटी,” मधुसूदन हालदार दृढ़ स्वर में बोले, “बतलाओ, तुम्हें क्या दिख रहा है ?” और बंदर का वह पंजा उन्होंने विमला की तरफ कर दिया ।
शीशे जैसे चमकते बंदर के पंजे को देखते ही विमला चीख पड़ी, “हां,.. हां…” वह चिल्लाई, “ये ही हैं, वे दोनों ।” बुरी तरह से हाफ रही थी वह ।
मैंने भी बंदर के उस पंजे की तरफ देखा । उसमें छोटी-छोटी दो आकृतियां दीख रही थीं । बिल्कुल स्पष्ट विशालकाय आकृति का एक पुरुष और बड़े-बड़े स्तनों वाली एक दीर्घकाय महिला का अक्स आइने जैसे झिलमिलाते हुए पंजे पर उभर आया था वे दोनों मस्ती में झूम रहे थे । उनकी आंखें जल रही थीं ।
“ठीक है, ” मधुसूदन हालदार बुदबुदाये और शीशे पर हाथ फेरा उन्होंने । उसकी आइने जैसी चमचमाहट मिट गयी । बंदर का पंजा सामान्य हो गया ।
“परतापुर वाले तुम्हारे होने वाले समधी ने कुंडाली के सबसे खतरनाक बिल्ली का मसान भेजे थे, रामगोपाल, तुम्हारी लड़की को ठिकाने लगाने के लिए, दादू बोले, “भाग्य प्रबल था विमला का, कि बच गयी, अन्यथा यह खुद भी मसान बन जाने वाली थी।”
वहां उपस्थित लोगों के चेहरे फीके पड़ गये । कानाफूसी होने लगी समूचे माहौल में ।
अपने पुराने झोले में हाथ डालकर मधुसूदन हालदार ने तोते के सिर वाला पीतल का लैंप निकाला था । उसे अपने अंगौछे से पोंछकर उन्होंने मेज दोनों मेज पर रखा, फिर मेरी तरफ मुखातिब होकर वे बोले, “आपका कलेजा मजबूत है न, डॉ. नारद ?
मैंने हंसकर कहा, “हां, सामान्य तौर पर मैं भयभीत नहीं होता ।“
“तब ठीक है। ” मधुसूदन हालदार बोले, “क्योंकि अब आप जो नजारा देखेंगे । वह सारी उम्र आप भूल नहीं पाएंगे… बेहद खौफनाक मंजर होगा वह ।”
कहते हुए दियासलाई से उन्होंने तोते के सिर वाली लैंप की बत्ती जलाई । लैंप जलने लगा । रेड़ी के तेल की गंध कमरे में फैल गयी ।
मधुसूदन हालदार ने अपनी आंखें बंद की । उनके होंठ हिलने लगे । वे कुछ बुदबुदा रहे थे । कमरे में स्तब्धता छाई थी ।
अस्फुट बुदबुदाते ही बुदबुदाते आंखें बंद किये मधुसूदन हालदार ने कागज की एक पुड़िया खोलकर उसमें से राल निकाली । पाउडर की शक्ल में थी वह । आम तौर पर उसका प्रचलन देहातों में चूड़ी बनाने के लिए होता है । वही पाउडर उन्होंने लैंप की बत्ती पर फेंका । लौ तेज हो गयी ।
कमरे में अब फिर से भनभनाहट होने लगी थी, लेकिन लोग बातचीत नहीं कर रहे थे । इस दफा वे खामोश, आंखें फाड़े मधुसूदन हालदार और तोते के सिर वाले उनके लैंप की तरफ देख रहे थे ।
दो बर्रे कमरे में घुस आई थीं । लैंप के आसपास उड़ते हुए वे ही भनभन कर रही थीं ।
मधुसूदन हालदार ने आंखें खोलीं । उन बर्रों को देखकर वे मुस्कराये । अस्फुट स्वर में बोले, “गुड…”. और एक मुट्ठी राल उन्होंने फिर लैंप की तरफ फेंकी । पीली लौ और भी तेजी से फड़फड़ाने लगी ।
ब्रजेन राय की तरफ मुड़कर मधुसूदन बाबू ने कहा, “ये बर्रे आप देख रहे हैं न ? इन्हें देखकर आपको क्या महसूस होता है ? “
“बाहर से उड़कर ये कमरे में आ गयी है, ” ब्रजेन राय बोले, “सामान्य-सी बर्रे हैं… थोड़ी देर में बाहर चली जाएंगी ।
“इनकी तरफ खूब गौर से देखिए, डॉ. नारद । मधुसूदन बाबू ने कहा, उनका स्वर खासा रहस्यमय हो आया था। ” ठीक-ठीक, बताइये, क्या ये बर्रे ही हैं।” ब्रजेन राय इन्हें पहचान नहीं पाये ।
वे दोनों बर्रे तोते के सिर के ठीक ऊपर उड़ रही थीं । मुझे साफ-साफ नजर आ रही थीं वे । तब भी उनकी तरफ खूब ध्यान से देखा मैंने ।
और जो देखा, मारे भय के मैं सिहर उठा ।
वे बर्रे नहीं थी । बर्रे जैसे पंख लगाये, बरों की छोटी-सी शक्लों में, वे एक आदमी और औरत थे । हू-ब-हू वही जिन्हें थोड़ी देर पहले मैंने बंदर की हथेली पर बने आइने में देखा था । लगभग डेढ़ इंच लंबी वह औरत, उसी के साथ-साथ वह आदमी उन दोनों के सारे अवयव पुरुष और नारी जैसे ही थे । मनुष्यों के पंख नहीं होते । लेकिन उनके पंख थे । तोते के सिर पर लगी बत्ती के आसपास अब वे झूल रहे थे ।
“तुम भी इन्हें देखो, रामगोपाल ।” मधुसूदन हालदार ने अभागी विमला के पिता से कहा, “अपनी पत्नी को दिखाओ ।”
रामगोपाल असाटी ने अपनी जगह से उचककर उन बर्रो की तरफ देखा । उनकी पत्नी ने भी और मारे भय के, उनकी चीख निकल गयी ।
विमला की नजर भी बर्रो पर पड़ गयी थी और अब वह गुंगुआ रही थी । किसी भयावह संत्रास से गुजर रही थी वह । दहशत से उसका चेहरा फीका पड़ गया था ।
“यहीं हैं कुंडाली वालों के भेजे हुए मसान ।” मधुसूदन हालदार ने कहा, “इनको ठिकाने लगाना जरूरी है, वरना ये पिशाच लालपुल को ही श्मशान बना डालेंगे।”
राल फिर से फेंकी मधुसूदन बाबू ने, लेकिन तोते के सिर पर जलती बत्ती के ऊपर नहीं, पंख लगाए उड़ रहे बर्रे बराबर उन दोनों स्त्री-पुरुष पर ।
पूरा कमरा हाहाकार से भर उठा । छटपटाती हुई कोई औरत बुरी तरह से रो रही थी, “हमें मत जलाओ…अब हम यहां कभी नहीं आएंगे…हमें माफ करो…” प्रचंड स्वरों में रोता हुआ वह पुरुष भी विलाप करते हुए, गिड़गिड़ा रहा था, “हमें छोड़ दो…हमसे बड़ी गलती हुई ।
कमरे में नरमांस के जलने की गंध-सी भरती जा रही थी उन आवाजों और रुदन के साथ ।
एक क्षण, दो क्षण । वह हाहाकार धीरे-धीरे फिर शून्य में निलय हो गयी । वह गंध भी मिट गयी आहिस्ता-आहिस्ता । कमरे में गहरा सन्नाटा छा गया था । पालथी मारे बैठे मधुसूदन हालदार की दोनों आंखें बंद थीं ।
सिर्फ तोते के सिरवाला वह लैंप भर जल रहा था, धीरे-धीरे, निष्कंप ।
मधुसूदन हालदार ने अपनी आंखें खोलीं । विमला की तरफ देखा उन्होंने । वह सामान्य नजर आ रही थी । उसकी आंखों की चमक भी वापस आ गयी थी ।
“इसे खाना खिलाओ।” मधुसूदन हालदार बोले ।
पूरी और सब्जी एक थाली में आई । अचार और पापड़ भी । उसकी मां उसे भोजन कराने उठने लगी ।
“नहीं, इसे खुद खाने दो। ” दादू ने कहा, “चलो, शुरू करो, बेटी ।“
विमला ने पूरी में सब्जी लगाकर पहला निवाला अपने मुंह में डाला, फिर दूसरा । अचार और पापड़ भी खाये उसने तल्लीनता से ।
इस दफा न तो उसका चेहरा विवर्ण हुआ और न ही मुंह से हड्डियां और खून ही गिरे । वह शाप मुक्त हो गयी थी ।