ताश के पत्तों से भविष्य कैसे जाने | ताश के पत्तों की जानकारी | How To Predict The Future With Cards
हालांकि ताश के पत्तों की उत्पत्ति का विस्तृत इतिहास काल की अनेक पत्तों में छुपा हुआ है, फिर भी इतना तो निश्चित है कि ताश के इन पत्तों का आविष्कार मूलतः भविष्य की गुत्थियाँ सुलझाने, भविष्य के गर्भ में छुपी घटनाओं को जानने-बताने के लिए ही किया गया था ।
आज की तरह ताश के इन पत्तों का चलन मात्र ‘मनोरंजन’ हेतु नहीं था । इस सम्बन्ध में एक तथ्य और उल्लेखनीय है कि ताश के पत्तों का आविष्कार व प्रचलन भारतीय ज्योतिष की किसी भी विधा में उपलब्ध नहीं होता ।
प्राचीन भारत के इतिहास को देखें, चौसर मिलता है, शतरंज मिलती है, ताश नहीं । कालान्तर में १७वीं शताब्दी में यहां गोल ताश के पत्तों का चलन हुआ, वह भी मात्र मॅनोरंजन के लिए !
‘ताश’ के पत्तों की उद्भावना और उनकी डिजायनिंग के विषय में कई मत हैं । एक वर्ग मानता है कि ताश के पत्तों का विकास चीन में सन् ९६९ ई० में प्रचलित ‘डिजायनिंग स्टिक्स’ से हुआ । कहते हैं, चीन की महिलाओं ने सन् ९६९ ई० में खाली समय बिताने के उद्देश्य से ताश खेलना आरम्भ किया । बाद में १३वीं शताब्दी में निकोलो पोलो अथवा मार्को पोलो इस खेल को यूरोप ले गया । लेकिन यह मत अपनी आधारहीनता के कारण आमतौर पर स्वीकार्य नहीं है ।
इस सन्दर्भ में कुछ लोगों की मान्यता है कि ताश के इन प्रचलित पत्तों का विकास प्राचीन मिस्रवासियों द्वारा प्रयुक्त पौराणिक पुस्तक ‘बुक ऑफ ठाठ’ से हुआ | सत्य अथवा तथ्य जो भी हो, यह ऐतिहासिक मान्यता है कि ताश के पत्ते मूलतः सन् १३०० ई० के बाद ही यूरोप में पहुँचे । इन्हें यूरोप पहुंचाने का श्रेय घुमन्तु मूल की जनजातियों को, जिन्हें ‘घुमन्तू’, ‘घुमक्कड़’, ‘बंजारा’ या ‘जिप्सी’ भी कहते हैं, जाता है ।
कहते हैं, इस जनजाति के (घुमन्तू) लोग सुदूर पूर्व एशिया (कुछ के मतानुसार) से चलकर पर्शिया-वर्तमान ईरान-पहुँचे । उस समय वहां जो ताश प्रचलित थे, उन्हें ‘अटाउट्स’ कहा जाता था । इन पत्तों पर आकृति-चित्र बने हुए थे । भारत से होकर वहां पहुँचने वाली इस घुमन्तू जाति के लोगों ने अपने सामाजिक स्तर को ऊपर उठाने की गरज से स्वयं को मिस्र का निवासी घोषित किया । अतः यह सम्भावना भी गलत न होगी कि यूरोप में पहुंचे ताश के पत्तों की जन्मभूमि मिस्र न होकर पर्शिया (फारस) रही हो ।
जो भी हो, ताश की गड्डी इस जाति की एक उल्लेखनीय सम्पत्ति मानी जाती थी । इस जाति से सम्बद्ध ऐसा कोई भी दल अथवा बंजारों का समूह न था, न होगा, जिसके पास अपनी ताश की गड्डी न हो । ताश की गड्डी के साथ ही इनके दल में एक ऐसा भी व्यक्ति अवश्य होता था जो इन पत्तों के अर्थ को अच्छी तरह जानता-समझता हो ।
यूरोप में इन पत्तों का नया रूप विकसित हुआ । तब इन पत्तों को ‘टैरट्स’ कहा गया । उस समय एक गड्डी में ७८ पत्ते हुआ करते थे । इनमें से ५६ कार्ड्स आजकल के पत्तों की तरह होते थे। जिस तरह आज एक गड्डी में चार तरह के पत्ते-पान, फूल, ईंट, हुकुम होते हैं और इनमें हरेक ‘सूट’ कहलाता है, इसी तरह उस समय के सूट में भी चार ही तरह के पत्ते होते थे, सिर्फ नाम का अन्तर था – तलवार, कप, सिक्का और छड या रॉड । हर ‘सूट’ में चार दरबारी पत्ते हुआ करते थे – बादशाह, बेगम, सरदार और गुलाम। इनके अलावा हर सूट में १ से १० तक के पत्ते भी होते थे जिन पर संख्यामूलक प्रतीक चिन्ह अथवा भिन्न ‘स्पॉट’ बने होते थे । आज भी इन्ही स्पॉट के जरिये विभिन्न चार ‘सूट्स’ के पत्तों को पहचाना जाता है – जैसे फूल के पंजे पर ५ की संख्या के साथ ५ फूल भी चिन्हांकित होते हैं । इसी तरह अन्य पत्तों पर भी चिन्ह व संख्या अंकित रहती है । इनके (अर्थात उपर्युक्त ५६ कार्ड्स के अलावा) अतिरिक्त अवशिष्ट २२ पत्तों पर पर्शियन ताश की गड्डी के अनुरूप प्रतीकात्मक चित्र बने होते थे । हालांकि ये २२ पत्ते सबसे अलग होते हैं और अपने अनुरूप ही विभिन्न प्रकार के व्यक्तियों और मकसद की ओर संकेत करते हैं । इन परम्परागत मूल २२ पत्तों का विस्तृत विवरण आगे बताया जाएगा | यहां इतना ही कहना पर्याप्त है कि मनीषियों के अनुसार प्राचीन काल में इनका उपयोग भावी घटनाओं की सांकेतिक जानकारी प्राप्त करने के लिए ही किया जाता था ।
आज भी ये २२ कार्ड व्यक्तियों के चरित्रों को उद्घाटित करने एवं भावी घटनाओं की सूचना देने में समर्थ हैं । इनका भरपूर उपयोग अंकशास्त्र व टैरो कार्ड में किया जाता है ।
सच तो यह है कि ताश के इन बाईस पत्तों में कुदरत ने अजीबोगरीब राज छुपा रखे हैं । गड्डी का हर पत्ता दिव्यतायुक्त होता है, अतः इस विद्या के जानकार, पूर्ण दक्ष एवं विश्लेषणकर्ता लोग गड्डी के हर ताश को, उसमें अन्तर्निहित रहस्य को, पढ़ने और जानने के लिए काफी महत्त्वपूर्ण मानते हैं । वे इस बात पर भी भली प्रकार से गौर करते हैं कि गड्डी से खींचा गया पत्ता सीधा निकलता है, या उल्टा । पत्ता सीधा निकलता है तो उसके अर्थ वही होते हैं जो वास्तव में होने चाहिए; लेकिन पत्ता अगर ‘उल्टा’ निकलता है तो निश्चय ही वह ‘बुरे’ अर्थात् ‘बदकिस्मती’ का अर्थ देगा ।