वास्तु के अनुसार दिशाओ का जीवन पर प्रभाव | Directions Influence Life In Vastu

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वास्तु के अनुसार दिशाओ का जीवन पर प्रभाव Directions Influence Life In Vastu

वास्तुशास्त्र
में दिशाओं का विशेष महत्व होता है
| वास्तु
में कुल मिलाकर
9 दिशाएं बताई गयी हैं |

आइए, जानते
हैं इन दिशाओं का महत्व
, स्वामी, तत्व
और जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव
के बारे मे :

पूर्व दिशा

इस दिशा के स्वामी इंद्रदेव हैं, यह
पितृ भाव की दिशा मानी गई
है | इसे
बंद करने या दक्षिण
, पश्चिम
से अधिक ऊंचा करने से मान-सम्मान को हानि
, कर्ज
का न उतरना जैसे परेशानियां हो सकती हैं
|


पश्चिम दिशा

यह दिशा वायु तत्व का प्रतिनिधित्व करती है | इसके
स्वामी वरुणदेव हैं
| लाभ
की इस दिशा को बंद या दूषित करने से जीवन में निराशा
, तनाव, आय
में रुकावट और अधिक खर्च होने का डर बना रहता है
|


उत्तर दिशा

जल तत्व का प्रतिनिधित्व करने वाली उत्तर
दिशा को मातृभाव से जुड़ा हुआ माना गया है
| इसके स्वामी कुबेर हैं | इस
दिशा के दूषित या बंद होने से धन
, शिक्षा और सुख
की कमी जीवन में बनी रहती
है | इस
दिशा का खुला
, साफ और हल्का होना आवश्यक है |

             

दक्षिण दिशा

दक्षिण
दिशा के स्वामी यम हैं
| इस
दिशा का खुला और हल्का रखना दोषपूर्ण है
| इस दिशा में दरवाजे और खिड़कियां होने से रोग, शत्रुभय, मानसिक
अस्थिरता एवं निर्णय लेने में कमी जैसी परेशानियां होने लगती हैं
|

 

दक्षिण-पूर्व

आग्नेय कोण के रूप में यह दिशा अग्नि तत्व को
प्रभावित करती है
| इस
दिशा के स्वामी अग्निदेव हैं
| इस दिशा के दूषित या बंद होने से स्वास्थ्य
समस्या आती है तथा आग लगने से जान-माल को नुकसान होने का भी भय
ना
रहता है
|


दक्षिण-पश्चिम

पृथ्वी तत्व का प्रतिनिधित्व करने वाली इस
दिशा को नैऋत्य कोण भी कहा जाता है
| इस दिशा के स्वामी नैरुत देव हैं | इसके
दूषित होने से शत्रुभय
, आकस्मिक दुर्घटना एवं चरित्र पर लांछन
जैसी समस्याएं आती हैं
|

                        

उत्तर-पश्चिम

यह दिशा वायव्य कोण वायु तत्व
वायु देवता से जुड़ी हुई है
| इस दिशा के बंद या दूषित होने से शत्रुभय, रोग, शारीरिक
शक्ति में कमी और आक्रामक व्यवहार
होने जैसी समस्याएं आती हैं |


उत्तर-पूर्व

यह दिशा ईशान कोण के नाम से जानी जाती है | अत्यंत
पवित्र मानी जाने वाली इसी दिशा में पूजाघर वास्तुसम्मत है
| इसके
दोषपूर्ण होने से साहस की कमी
, अस्त-व्यस्त
जीवन
,
कलह एवं बुद्धि भ्रमित होने का अंदेशा रहता
है
|


ब्रह्मस्थान या केंद्र

आकाश, भवन
के मध्य भाग को माना जाता है
| ईशान कोण की तरह इस दिशा को भी स्वच्छ और
पवित्र रखना आवश्यक माना गया है अन्यथा जीवन में कष्ट
, बाधा, तनाव, कलह
एवं चोरी आदि समस्यायों का सामना करना पड़ सकता है
| यहां
पर भारी-भरकम सामान रखने या निर्माण करने से
चना
चाहिए
|                       

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