मनोवैज्ञानिक या आदर्शवादी हाथ
हाथ के सात प्रकारों में से यह प्रकार सर्वाधिक सुन्दर किन्तु
सबसे अभागा प्रकार है, जिसे मनोवैज्ञानिक हाथ कहा
जाता है । अपने शुद्ध रूप में इस प्रकार का हाथ अत्यन्त दुर्लभ है । इसके नाम से इसका
परिचय मिलता है – ऐसा हाथ जिसको मानस से, आत्मा से जोडा जाएगा।
अपने शुद्ध रूप में इस प्रकार का हाथ मिलना कठिन है, किन्तु पूरी तरह
से शुद्ध रूप में ऐसा हाथ भले न मिले, ऐसे सैकड़ों स्त्री-पुरुष मिल जाएंगे जिनकी मनोवैज्ञानिक
प्रकार से इतनी निकटता रहती है कि उन्हें इसी का एक भाग माना जा सकता है |
यदि हमारे आज के जीवन को नियन्त्रित करने वाले रीति-रिवाज पर
ध्यान दिया जाए तो मनोवैज्ञानिक
प्रकार का हाथ सभी प्रकारों में सर्वाधिक सुन्दर होता है । अपनी बनावट में यह लम्बा, संकरा, नाजुक-सा दीखने
वाला, पतली, ढलवां उंगलियों
वाला और लम्बे बादाम के आकार के नाखूनों
वाला होता है । यद्यपि इस प्रकार के हाथ की सुघराई और सुन्दरता ही इसमें उर्जा और शक्ति के अभाव की सूचक हैं और अगर किसी को जीवन संग्राम में ऐसे हाथ को आजमाना पडे तो
वह सहज ही उस पर तरस खायें
बिना नहीं रह सकता।
मनोवैज्ञानिक हाथ वालों की प्रकृति पूरी तरह से कल्पना
प्रवण और आदर्शवादी होती
है। वे सौन्दर्य की हर रूप और आकार में प्रशंसा करते है, अपनी आदतों में सुकोमल और स्वभाव में शान्त होते हैं । उनके
प्रति सदव्यवहार करने वाले हर
व्यक्ति पर वे सहज ही विश्वास कर बैठते हैं और उन पर भरोसा करने लगते हैं। उन्हें
बिल्कुल यह भान नहीं कि व्यावहारिक, दुनियादार या तर्कसंगत कैसे हुआ जाए, नियमितता समयबद्धता और अनुशासन के बारे में उनकी कोई अवधारणा
ही नहीं होती, वे आसानी से दुसरों से प्रभावित हो जाते हैं और अपनी इच्छा के
विरुद्ध मानव जाति के तीव्र प्रवाह में बह
जाते हैं। इस हाथ की प्रकृति को
रंग इतना अधिक भाता है, जितना सम्भव है, और कुछ के लिए तो संगीत की हर अभिव्यक्ति हर आनन्द, हर दुःख, हर भावना रंगों
में प्रतिबिम्बित होती है। इस प्रकार के लोग अनजाने धार्मिक वृत्ति के होते हैं, उन्हें मालूम तो
है कि सत्य का अनुभव कैसा होता है, किन्तु सत्य को पाने की क्षमता उनमें नहीं
होती। धर्म के क्षेत्र में ऐसे लोग धार्मिक उपदेश के तर्क या सत्य की अपेक्षा उसके अनुष्ठान, संगीत या
कर्मकांड के सौन्दर्य से अधिक अभिभूत होते हैं। वे गहन रूप में भक्तिप्रवण होते
हैं, लगता है कि वे आध्यात्मिकता
के दायरे में ही टिके हैं, उन्हें जीवन के रहस्य और रोमांच का भी, बिना यह जाने कि
क्यों, अनुभव होता रहता
है । जादू और रहस्य का हर रूप उन्हें लुभाता है, उन पर सरलता से
अपने को थोपा जा सकता है, किन्तू उनके प्रति छल
उन्हें पूरी कड़वाहट के साथ बुरा लगता है। ऐसे व्यक्तियों की अन्तर्ज्ञान की शक्तियां अत्यधिक विकसित होती हैं, वे संवेदन, माध्यम, दूर श्रवणकर्ता
आदि के रूप में खरे सिद्ध होते
हैं क्योंकि वे अपने अधिक व्यावहारिक भाई-बहनों की तुलना में भावनाओं, अन्तर्ज्ञान और प्रभावों के प्रति अधिक जागरूक होते हैं।
जिन मां-बाप के यहां ऐसे हाथ वाली सन्तान हो, वे समझ ही नहीं
पाते कि बच्चे के प्रति कैसा व्यवहार करें। विचित्र बात यह होती है कि ऐसे बच्चे प्रायः दुनियादार और
व्यवहारिक दंपतियों की सन्तान होते हैं।
अभिभावकों की तुलना में पूरी तरह विपरीत स्वभाव उत्पन्न करते है | बहुत बार इस
प्रकार के स्वभाव वालों को अभिभावकों के अज्ञान या नादानी के कारण व्यापारी किस्म
के जीवन में धकेल दिया जाता है, सिर्फ इसलिए कि पिता व्यापारी है | जीवन का पूर्णरूपेण गलत होना इस प्रकृति की इस कदर कुचस देता
है या बौना बना देता है कि इस तरह के वातावरण में जीने का परिणाम या तो पागलपन होता है
या अकाल मृत्यु ।
इस सत्य पर प्रश्न
नहीं लगाया जा सकता कि दुनिया के पागलखाने अधिकांशतः। अभिभावकों के अपने उत्तरदायित्व में असफल रहने के कारण ही भरे रहते है और इस सत्य को जितनी जल्दी जान लिया जाए, उतना ही बेहतर है
।
हर रूप से संवेदनशील प्रकृति का ज्ञापन करने वालेइन सुंदर नाजुक हाथों के
स्वामी आम तौर पर
जीवन में अपनी स्थिति को इतनी भावुकता के साथ महसूस
करने लगते हैं कि प्राय: वे स्वयं को पूरी तरह निकम्मा और अनुपयोगी मान बैठते हैं
और परिणामस्वरूप अकेलेपन, उदासी और मानसिक विकृति का शिकार हो जाते हैं । जबकि ऐसी-बात है नहीं | प्रकृति ने जो कुछ बनाया है, उसमें से कुछ
अनुपयोगी नहीं, ऐसी प्रकृति और स्वभाव की सुन्दरता और मधुरता अधिकांशत: इस
दुनिया के लिए उन लोगों की अपेक्षा अधिक उपयोगी और कल्याणकारी सिद्ध होती है जो इस
दुनिया की स्थूल मौलिक सम्पत्ति जमा करके स्कूल या मन्दिर बनवाया करते हैं। हो
सकता है, इन लोगों को
मानवता के नियमों में एक सन्तुलन स्थापित करने को दुनिया में भेजा गया हो।