दार्शनिक हाथ | Type of Hand – 4

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दार्शनिक हाथ 


इस प्रकार के हाथ का नाम स्वयं अपना परिचय देते है क्योंकि दो शब्द फिलास‘ (प्रेम) और सोफिया‘ (बुद्धिमत्ता)
मिलकर
फिलोसोफी(दर्शन) शब्द की
रचना करते हैं । हाथ का यह आकार आसानी से पहचाना जाता है। आम तौर पर ऐसा हाथ लम्बा
और कोणयुक्त होता है
| जिसकी पतली
उंगलियां
, सुविकसित जोड़ और
लम्बे नाखून होते हैं । 

जहां तक पैसे के मामले में सफलता का प्रश्न है, ऐसा हाथ होना
अनुकूल नही पड़ता क्योंकि
दि यह कुछ संग्रह करता है तो वह बुद्धिमत्ता है, स्वर्ण नहीं। ऐसे
हाथ वाले लोग अध्येता निकलते हैं
, और उनके अध्ययन के विषय भी विचित्र होते हैं ।

इस रूप में इनमें भी अन्य मनुष्यों की तरह महत्वाकांक्षा की
कमी नहीं होती
, फर्क इतना ही है
कि इनकी आकांक्षा कुछ अलग किस्म की होती है। ये दूसरों से कुछ अलग पहचान रखना पसन्द
करते हैं और इस ध्येय तक पहुंचने के लिए हर तरह की असुविधा-अभाव में से निकल
जाते है | सौन्दर्य में उनकी दूनिया है, प्रदार्थ से परे
उनका शासन है
, विचारों जगत मे उनकी उड़ान है जहां भौतिकवादी भय से जाने का
साहस तक नहीं करते । ऐसे हाथ
भारत मे बहुतायत
मे मिल जाते है
| ऐसे हाथो को ब्राह्मणों, योगियों और अन्य
रहस्यवादियों में बड़ी
संख्या मे देखा जा सकता है।

अपने चरित्र से ही वे गुपचुप और खामोश होते हैं, वे गहरे विचारक
होते हैं जो छोटी-छोटी बा
तो में सावधानी
बरतते हैं
, यहां तक कि मामूली
शब्दों के प्रयोग में भी वे दूसरों से भिन्न होने के गर्व से
गौरवान्वित रहते हैं | उन्हें कोई चोट पहुंचाये तो वे भूलते नहीं | वे अच्छे असरों की प्रतीक्षा में रहते हैं इसलिए सुअवसर
भी उनके सेवक होते हैं ।

ऐसे हाथ प्रायः आत्माभिमान के सूचक हैं जो कि ऐसे लोगों के
जीवन के अनुरूप ही हैं। अगर उनमें किसी वृ
त्ति के विकास की अधिकता हो जाए तो वे धर्म और
रहस्यवाद के क्षेत्र में कट्टरपन्थी हो जाते हैं। इस
तथ्य के उदाहरण भारत मे उपलब्ध है, जहां योगी बचपन में ही सब सम्बन्धों-नातों से अपने को अलग
कर लेते हैं । व्रत और तप करके शरीर को मारते हैं ताकि आत्मा जीवित हो उठे ।

इस कोटि के हाथों के मामले में हमेशा यह ध्यान रखना चाहिए कि उंगलियों के सुविकसित जोड़
विचारप्रधान लोगों की उल्लेखनीय विशेषता हैं जबकि एकसार और नुकीली उंगलियां इसके
विपरीत
प्रभाव देती हैं। फिर
हाथ में जोड़ों का यह विकास विश्लेषण के प्रति लगाव भी पैदा करता है
, किन्तु यह लगाव
रसायनों
के विश्लेषण के प्रति होगा या मानवता के विश्लेषण
के प्रति इसका निर्धारण हाथ का आकार या प्रकार ही करेगा । उंगलियों की नोक यदि
वर्गाकार और शंकू-आकार एक साथ है अर्थात् दोनों का मिश्रण है तो नियम यही है कि
व्यक्ति की प्रेरणागत विशेषताओं को गम्भीरता का
सहारा मिलेगा और उसमें धार्मिक विचार और रहस्यवाद के
लिए अनुकूलता पैदा होगी
, और ऐसे लोग इन क्षेत्रों से जुड़ भी जाते हैं। फिर ये लोग
जिसे सत्य समझते हैं
, उसकी खोज में धैर्य भी लिये होते हैं और साथ ही शंकु आकार की
विशेषता आत्मोत्सर्ग के प्रति प्रेम भी उनमे होता है । मानवता के इस व्यापक
प्रान्त में दार्शनिक प्रकार के स्त्री-पुरुष यदि दूसरों से एकदम अलग नजर आते हैं
तो इसलिए कि परस्पर विरोधाभासी इन विशेषताओं का समन्वय उन्हें विचार की विशिष्टता
प्रदान करता है। 

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