नील एल्डेन आर्मस्ट्रांग – विश्व का प्रथम चंद्र यात्री | Neil Alden Armstrong
मनुष्य ने सोचा, कि क्यों न आकाशीय पिडो की यात्राएं की जाए। इसके लिए उसने अंतरिक्ष यान (Spacecraft) विकसित करने का सिलसिला शुरू किया और चंद्रमा को अपनी यात्रा का उद्देश्य चुना । इसका कारण यह था कि चंद्रमा ही धरती के सबसे पास का उपग्रह था । शेष ग्रह और उपग्रह चंद्रमा की तुलना में बहुत दूर थे ।
चंद्र अभियान की वास्तविक कहानी ४ अक्तूबर, १९५७ से शुरू होती है । उस दिन रूस ने स्पुतनिक प्रथम कृत्रिम उपग्रह को अंतरिक्ष में भेजा था । इसे एक रॉकेट द्वारा अंतरिक्ष में भेजा गया था । इसका व्यास ५८ से. मी. और वजन लगभग ८४ कि.ग्रा. था । यह पृथ्वी की परिक्रमा ९६ मिनट में कर लेता था । धरती के १४०० चक्कर लगाने के बाद यह ४ जनवरी, १९५८ को धरती के वायुमंडल में जलकर राख हो गया ।
स्पुतनिक प्रथम को छोड़ने के एक महीने बाद ही रूस ने स्पुतनिक द्वितीय अंतरिक्ष में भेजा । इसमें लाइका (Laika) नाम की कुतिया को अंतरिक्ष में भेजा गया । लाइका अंतरिक्ष में जाने वाली प्रथम जीव थी ।
मई, १९५८ में एक बेहतर किस्म का उपग्रह स्पुतनिक तृतीय अंतरिक्ष में भेजा गया । इस यान में अंतरिक्ष की जानकारी प्राप्त करने के लिए अनेक वैज्ञानिक उपकरण भेजे गये । रूस को देखकर अमरीका ने भी अंतरिक्ष में जाने के प्रयास शुरू कर दिये ।
अमरीका ने ३१ जनवरी, १९५८ को एक्सप्लोरर नामक प्रथम उपग्रह अंतरिक्ष में भेजा । इसके बाद इन दोनों देशों में अंतरिक्ष जाने की ऐसी होड़ लगी की सुधरे हुए अंतरिक्ष यान विकसित होने लगे । १२ अप्रैल, १९६१ को रूस के यूरी गगारिन (Yuri Gagarin)और उनका यान धरती से ३२७ कि. मी. की ऊंचाई पर परिक्रमा करता रहा और अंतरिक्ष यान में उन्होंने यात्रा की | यात्रा कर गगारिन सकुशल धरती पर लौट आये ।
उसी वर्ष ५ मई, १९६१ को एलन शेपर्ड अंतरिक्ष में जाने वाले प्रथम अंतरिक्ष यात्री बने ।
२० फरवरी, १९६२ को जॉन ग्लेन अंतरिक्ष में गये और अपने अंतरिक्ष यान फ्रेंडशिप-7 में धरती की तीन चक्कर काटे |
इतनी प्रयासो के बाद भी अभी तक कोई भी व्यक्ति चंद्रमा की सतह पर नहीं उतर पाया था । अंतरिक्ष यात्राओं में अनेक खतरे थे । वहां कोई वायु नहीं होती । तापमान के परिवर्तन भी अति विषम होते हैं । शून्य गुरुत्व से आदमी भारहीनता का अनुभव करता है । इन सब समस्याओं के कारण अंतरिक्ष यात्रियों को एक कुत्रिम वातावरण में रहना पड़ता है । खाने, पीने, सोने, मूत्र त्याग करने और विष्टा त्याग करने के लिए विशेष सावधानियां बरतनी पड़ती हैं । अंतरिक्ष यात्री को यान के अंदर ऐसा लगता है जैसे वह वायु में तैर रहा हो । खतरनाक विकिरणों और अंतरिक्ष में तैरते पाषाण टुकड़ों से बचने के लिए अंतरिक्ष यान को सुरक्षा प्रदान करनी होती है । अंतरिक्ष यान में विशेष प्रकार के सूट पहनने पड़ते हैं। यान में चक्कर आते हैं । उल्टी आने की शिकायत होती है । सिर में दर्द होता है । इसी प्रकार और भी अनेक कठिनाइयां आती हैं । इसके लिए विशेष प्रकार की औषधियां लेनी होती हैं । भोजन सामग्री भी विशेष प्रकार की होती है । अंतरिक्ष यात्रियों के स्वास्थ्य और सुरक्षा का विशेष ध्यान रखना पड़ता है । सोते समय यात्री को अस्थिरता का अनुभव होता है । इसके लिए उन्हें विशेष पेटियां बांधनी पड़ती हैं । स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिए अंतरिक्ष यान में यात्रियों को विशेष प्रकार के व्यायाम करने पड़ते हैं । इस प्रकार अंतरिक्ष यात्राओं में अनेक कठिनाइयां यात्रियों को झेलनी पड़ती हैं ।
इन सब कठिनाइयों के बावजूद सन् १९६१ में चंद्रमा मे जाने की योजना प्रारम्भ किया गया और उद्घाटन २५ मई, १९६१ को राष्ट्रपति कैनेडी ने किया था । इस योजना के लिए अमरीका ने अपोलो नामक अंतरिक्ष योजना आरंभ की । उद्देश्य चंद्रमा की सतह पर उतरना था । अपोलो यान योजना में अंतरिक्ष यात्री, इंजीनियर और निर्माणकर्ता लग गये । २७ जनवरी, १९६७ को अपोलो यान अन्तरिक्ष मे गया जिसमें बैठे तीन यात्री बर्जिल ग्रिसौम (Bergile Grissom), Tom (Edward White) और रॉजर चैफी (Roger Chaffie) अंतरिक्ष मे भस्म हो गये । इससे अमरीकी वैज्ञानिकों को बहुत धक्का लगा । इसके बाद अगले यान में अनेक सुधार किये गये । दिसंबर, १९६८ को अंतरिक्ष यान चंद्रमा के दस चक्कर लगाये जिसे टेलीविजन पर प्रसारित किया गया | १९६९ में अपोलो ग्यारह नामक यान में तीन यात्रियों को बिठाकर चंद्र भेजा गया । ये तीन यात्री थे – नील आर्मस्ट्रांग, एडविन यूगेन एल्ड्रिन Eugene Aldrin) और माइकेल कोलिस (Michael Collins) |
२० जुलाई, १९६९ को रात के १० बजकर ५६ मिनट पर इस बार आर्मस्ट्रांग ने चंद्रमा की सतह पर अपना पहला कदम रखा, जिसे देखकर संसार में तहलका मच गया । उनके पीछे-पीछे एल्ड्रिन भी चंद्रमा पर उतरे और कोलिंस आदेशानुसार यान के अंदर ही रहे । इस प्रकार चंद्रमा की सतह पर पहुंचने में सफलता प्राप्त की ।
ये दोनों यात्री २१ घंटे ३५ मिनट तक चंद्रमा की सतह पर रहे । ये यात्री अपने साथ चंद्रमा की सतह से अनेक नमुने लेकर धरती पर वापस आये । इसके बाद चंद्रमा पर कई बार जाया गया । ११ दिसंबर, १९७२ को दो यात्रियों ने चंद्रमा की सतह पर ७४ घंटे ५९ का समय बिताया । वे अपने साथ ११३.६ कि.ग्रा. चंद्रमा की चटटानें और मिनरल नमुने लेकर धरती पर वापस आये । इस प्रकार मानव ने चंद्रमा की यात्रा को इस उपग्रह के अनेक रहस्यों का पता लगाया ।