काठगढ़ महादेव मंदिर | अर्धनारीश्वर मंदिर | Kathgarh Mahadev Mandir

Kathgarh Mandir

काठगढ़ महादेव मंदिर | अर्धनारीश्वर मंदिर

Kathgarh Mahadev Mandir

“शिव” “आदि” भी है और “अनंत” भी ।

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जिनके इशारे पर सम्पूर्ण सृष्टि चलती हैं। जो इस समस्त ब्रम्हांड के निर्माता भी है और संहारक भी अर्थात् इस सृष्टि के निर्माण से पहले भी “शिव” थे और सृष्टि के खत्म हो जाने के बाद भी “शिव” ही रहेंगे।

एक शिव के न जाने कितने ही रूप व नाम है और हर एक रूप और नाम की अपनी ही महिमा व गाथा है। शिव के उन्हीं रुपो में से एक है “अर्धनारीश्वर“, जिसे “शिव” और “शक्ति” का स्वरूप माना जाता है।

वैसे तो हमने भगवान शिव के अर्धनारीश्वर अवतार के बारे में सिर्फ कहानियों में सुना है। लेकिन आज हम एक ऐसे शिव मंदिर की बात कर रहे है, जहां भगवान शिव के अर्धनारीश्वर रूप के साक्षात् दर्शन होते हैं।

हम बात कर रहे हैं हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित काठगढ़ महादेव मंदिर की, जहां भगवान शिव अर्धनारीश्वर रूप में विद्यमान हैं।

काठगढ़ महादेव मंदिर विश्व का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां शिवलिंग दो भागो में विभाजित है अर्थात् आधे शंकर और आधे पार्वती के रुप में। यहां भगवान शिव और माता पार्वती काले भूरे रंग के पाषाण रुप में विराजित हैं जिनमें भगवान शिव की लम्बाई ७ से ८ फीट और माता पार्वती की ६ से ७ फीट है ।

कहां जाता हैं कि भगवान शिव और माता पार्वती के शिवलिंग के मध्य का अंतर नक्षत्रों के अनुसार घटता बढ़ता रहता है और महाशिवरात्रि के दिन इनका मिलन हो जाता हैं अर्थात् भगवान शिव और माता पार्वती की ये प्रतिमाएं आपस में जुड़ी हुई होती हैं और ऋतुओं में परिवर्तन के साथ ही अलग होने लगती हैं।

काठगढ़ महादेव मंदिर में महाशिवरात्रि का दिन विशेष माना जाता हैं क्युकी उस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का पाषाण रुप एक हो जाता है । महाशिवरात्रि का दिन विशेष इसलिए भी माना जाता हैं क्युकी इसी दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुए था । यही वजह है कि महाशिवरात्रि में यहां विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। काठगढ़ महादेव के इस चमत्कार को देखने के लिए दूर दूर से भक्तो का तांता लगा रहता है।

काठगढ़ महादेव मंदिर का इतिहास


वैसे तो काठगढ़ महादेव की अलग-अलग कथाएं प्रचलित है, परन्तु शिव पुराण के अनुसार कहा जाता हैं कि एक बार भगवान ब्रम्हा और भगवान विष्णु के मध्य अपनी श्रेष्ठता को लेकर युद्ध हुआ, जिसमे वे अपने दिव्यास्त्रों का प्रयोग कर रहे थे जिससे सम्पूर्ण सृष्टि का विनाश संभव था । इस भयावह स्थिति को देख और सम्पूर्ण सृष्टि को विनाश से बचाने के लिए भगवान शिव अग्नितुल्य ज्योतिर्लिंग के रुप में प्रकट हुए और दोनों देवताओं को समान बता सम्पूर्ण सृष्टि को विनाश से बचा लिया । यही अग्नीतुल्य ज्योतिर्लिंग काठगढ़ महादेव के रूप में जाना जाने लगा। कहा जाता हैं कि यह अग्नीतुल्य ज्योतिर्लिंग शिवरात्रि के दिन प्रकट हुआ था, इसलिए भगवान शिव और माता पार्वती का ये पाषाण स्वरूप शिवरात्रि के दिन एक हो जाता है।

महाराजा रणजीत सिंह के काल में काठगढ़ महादेव मंदिर का जीर्णोद्धार


काठगढ़ महादेव मंदिर के जीर्णोद्धार में महाराजा रणजीत सिंह का विशेष योगदान रहा है कहा जाता है कि महाराजा रणजीत सिंह ने गद्दी संभाली तो वे पूरे राज्यों के धार्मिक स्थलों का भ्रमण कर जब वे काठगढ़ पहुंचे तो वे भगवान शिव के दर्शन कर इतना आनंदित हुए कि उन्होंने तुरंत शिवलिंग पर मंदिर बनवाया और फिर दर्शन कर आगे बढ़े ।

अर्धनारीश्वर शब्द का सूचक


शिव और शक्ति का संयुक्त रूप अर्थात् शिव और शक्ति के स्वरूप को ही अर्धनारीश्वर कहा गया है।

महादेव का अर्धनारीश्वर अवतार शिवशक्ति के संयुक्त रूप का ही सूचक हैं। शिव का यह अवतार स्त्री और पुरूष दोनों की संदेश देता है। जीवन में जितना पुरुषों का महत्व है उतना ही स्त्री का । ये दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे हैं और एक दूसरे को पूरा करते हैं ।

क्यों लेना पड़ा शिव जी को अर्धनारीश्वर का अवतार ?


शास्त्रों में कहा गया है और भगवान शिव ने अर्धनारीश्वर का रुप अपनी इच्छानुसार धारण किया था । भगवान के इस अवतार के पीछे एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई हैं।

शिव पुराण के अनुसार जब ब्रम्हा जी ने सृष्टि का निर्माण किया तो उन्होंने प्रारंभ में पुरूष की रचना की, परन्तु पुरूष की रचना से सृष्टि का विस्तार संभव न था अतः उन्होंने सृष्टि के विस्तार हेतु शिव जी की शरण में जाने का निर्णय किया और वे शिव जी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप करने लगे । कई वर्षों की तपस्या के फलस्वरूप भगवान शिव ने ब्रम्हा जी को उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर अर्धनारीश्वर रूप में दर्शन दिए और कहा कि स्त्री ही शक्ति की पूंजी है उसके बिना सृष्टि का आरंभ और विस्तार नहीं हो सकता, इतना कहकर उन्होंने अपने अर्धनारीश्वर रूप से स्त्री स्वरूप को अलग कर दिया । शिव के शरीर से अलग होकर शक्ति स्वरूपा ने अपनी दोनों भवो के मध्य से एक स्त्री को प्रकट किया और यही से सृष्टि का आगे संचालन हो पाया ।

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