धन्वंतरि पूजा मंत्र । धन्वंतरि मंत्र । धन्वंतरि पूजा विधि ।
Dhanvantari Mantra
वर्ष में एक बार धन तेरस के दिन भगवान धन्वंतरि की पूजा करने से विघ्न दूर होते हैं और घर में रोगों का प्रकोप नहीं होता। संसार के सारे सुख का आधार आरोग्य को माना गया है। इसीलिए कहावत कही जाती है – “पहला सुख निरोगी काया” ।
स्वस्थ शरीर से ही संसार के सारे काम किये जा सकते हैं। सभी धर्मों के साधन का मुख्य आधार हमारा शरीर है । शरीर को स्वस्थ रहना चाहिए और इसके लिए साल में एक बार भगवान धन्वंतरि का स्मरण पूजन भी करना चाहिए ।
पूजन के लिए पवित्र स्थान पर बैठकर आचमनी से जल लेकर तीन बार आचमन करना चाहिए। आचमन करते समय यह मंत्र पढ़ना चाहिए :
ॐ आत्मतत्वं शोधयामि स्वाहा, ॐ विद्यातत्वं शोधयामि स्वाहा, ॐ शिवतत्वं शोधयामि स्वाहा
आचमन करने के बाद दाहिने हाथ को स्वच्छ कर लेना चाहिए | फिर इसमें जल, अक्षत, फूल वगैरह लेकर पूजा का यह संकल्प करना चाहिए :
ॐ तत्सत् अघैतस्य ब्रह्मणोऽ ह्नि द्वितीय प्रहराधर्दे श्वेत-वराह-कल्पे, जम्बूद्वीपे भरत-खंडे अमुक-प्रदेशे अमुक-पुण्य-क्षेत्रे कलियुगे कलि-प्रथम-चरणे अमुक सम्वत्सरे कार्तिक मासे कृष्ण-पक्षे त्रयोदशी-तिथौ अमुक-वासरे अमुक-गोत्रोत्पन्नो अमुक-नाम-शर्मा श्रीधन्वंतरिदेवता-प्रीति-पूर्वक आयुष्य-आरोग्य-ऐश्वर्य अभिवृद्धयर्थ श्रीधन्वंतरि-पूजनमहं करिष्यामि ।
(अमुक के स्थान पर, अपना नाम, गोत्र दिन आदि का नाम लें)
संकल्प का जल छोड़ने के बाद अपने शरीर पर जल छिड़कते हुए यह मंत्र पढ़ना चाहिए :
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।
यः स्मरेत पुंडरीकाक्षं स वाह्याभ्यंतरः शुचिः ।।
अपने को शुद्ध कर लेने के बाद जलते हुए दीपक की लौ में भगवान धन्वंतरि का ध्यान करना चाहिए । दीपक के पास ही अगर मिल सके तो आसन पर भगवान धन्वंतरि का चित्र भी रखना चाहिए।
भगवान धन्वंतरि की चार भुजाएं हैं। वे पीला वस्त्र धारण करते हैं। वे आभूषणों से सुसज्जित हैं। उनका शरीर तरूण है, उनके नेत्रकमल के समान हैं। अलंकारों से विभूषित वे हाथ में अमृत से भरा हुआ कमंडल लिए हुए हैं। वे यज्ञ भाग के अधिकारी हैं, देव दानव, वंदित हैं, श्री युत है ।
इस प्रकार भगवान धन्वंतरि का ध्यान करते हुए यह श्लोक पढ़ना चाहिए :
चतुर्भुजं पीत-वस्त्रम् सर्वालङ्कार-शोभितम् ।
ध्याये धन्वंतरि देवं सुरासुर नमस्कृतम् ।।
युवानं पुंडरीकाक्षम् सर्वाभरण भूषितम् ।
दधानं अमृतस्यैव कमंडलु श्रिया युतम् ।
यज्ञ भोग भुजं देवं सुरासुर नमस्कृतम् ।
ध्याये घन्वंतरिं देवं श्वेतांबर धरं शुभम् ।।
ध्यान के बाद भगवान धन्वंतरी का आह्वान करते हुए मन में यह विचार लाना चाहिए :
देवताओं के ईश्वर, तेज संपन्न, संसार के स्वामी देवताओं में श्रेष्ठ भगवान धन्वंतरि आप मेरी पूजा स्वीकार करें। आह्वान के समय यह मंत्र पढ़ना चाहिए :
आगच्छ देव देवेश ! तेजोराशे जगत्पते ।
क्रियमाणां मया पूजां गृहाण सुर-सत्तम् ।
श्री घन्वंतरि-देवं आह्वायामि ।।
आह्वान के बाद यह मंत्र पढ़कर देवता के आसन के लिए ५ फूल अंजलि में लेकर अपने सामने छोड़ना चाहिए और यह मंत्र पढ़ना चाहिए –
नानारत्न समायुक्तं कार्तस्वर विभूषितं ।
आसनं देव देवेश प्रीत्यर्थ प्रतिगृह्यताम् ।
श्री धन्वंतरि देवाय आसनार्थे पंच पुष्पाणि समर्पयामि ।।
इसके बाद भगवान का स्वागत इस प्रकार करना चाहिए –
श्री घन्वंतरि देव स्वागतम् ।
स्वागत के बाद देवता के चरण धोने के लिए जल छोड़ना चाहिए और यह मंत्र पढ़ना चाहिए –
पाध्ं गृहाण देवेश सर्वक्षेम समर्थ भो: ।
भक्त्या समर्पितं देव, लोकनाथ नमोऽस्तु ते ।।
श्री घन्वंतरि देवाय पाध्ं नमः ।।
पैर धोने के लिए जल छोड़ने के बाद भगवान के अभिषेक के लिए जल छोड़ना चाहिए और यह मंत्र पढ़ना चाहिए :
नमस्ते देव देवेश नमस्ते धरणीधर ।
नमस्ते जगदाधार अघ्र्योऽयं प्रतिगृह्ययताम् ।।
गंध पुष्पाक्षतैर्युक्तं फल द्रव्य समन्वितम् ।
गृहाण तोयमघ्रर्यर्थ परमेश्वर वत्सल ।।
अभिषेक के लिए अघ्रर्य देने के बाद इस मंत्र के साथ भगवान को चंदन चढ़ाना चाहिए :
श्रीखंड-चंदनं दिव्यं गंधाढ्यं सुमनोहरम् ।
विलेपनं सुरश्रेष्ठ चंदनं प्रति गृहयताम् ।।
चंदन समर्पित करने के बाद इस मंत्र से फूल चढ़ना चाहिए :
सेवंतिका बकुल चंपक पाटाब्जैः पुन्नागजाति करबीर रसाल पुष्पैः ।
बिल्व प्रवाल तुलसीदल मल्लिकामिस्त्वाम् पूजयामि जगदीश्वर मे प्रसीद ।।
फूल चढ़ाने के बाद इस मंत्र से भगवान को धूप समर्पित करना चाहिए :
वनस्पति रसोद्भूतो गंधाढ्यं सु-मनोहर : ।
आघ्नेय: सर्व देवानां धूपोऽयं प्रति गृहयताम् ।।
धूप समर्पित करने के बाद इस मंत्र से दीपक समर्पित करना चाहिए :
साज्यं च वर्तिसंयुक्तं च वह्निना योजितं मया ।
दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्य विरापहम् ।।
भक्त्य्रा दीपं प्रयच्छामि देवाय परमात्मने ।
त्राहि माम् निरयाद् घोराद्दीपोऽयं प्रतिगृहयताम् ।।
दीप समर्पित करने के बाद इस मंत्र के साथ नैवेद्य चढ़ाना चाहिए :
शर्करा खंड खाढ्यानि दषिक्षीरघृतानि च ।
आहारो भक्ष्य भोज्यं च नैवेढ्या प्रतिगृहयताम् ।।
यथांशतः श्रीघन्वंतरि देवाय नैवेढ्या समर्पयामि।
ॐ प्राणाय स्वाह, ॐ अपानाय स्वाहा, ॐ ब्यानाय स्वाहा,
ॐ उदानाय स्वाहा, ॐ सभानाय स्वाहा ।
इसके बाद पीने के लिए आचमन के लिए हाथ और मुंह धोने के लिए जल और चंदन समर्पित करते हुए यह मंत्र पढ़ना चाहिए :
ततः पानीयं समर्पयामि इति उत्तराणेशधनम् ।
हस्त प्रक्षालनम् समर्पयामि, मुख प्रक्षालनम्, करोदद्धनार्थे चंदनं समर्पयामि ।।
इसके बाद भगवान को तांबूल समर्पित करना चाहिए और यह मंत्र पढ़ना चाहिए :
पूगी फलं महादिव्यं नागवल्ली दलैर्युतं ।
कपूरैला समायुक्तं तांबूलं प्रतिगृह्यताम् ।
श्री धन्वंतरि देवाय मुख वासार्थ पूगी फल युक्तं तांबूलं समर्पयामि ।।
तांबूल समर्पण के बाद यह मंत्र पढ़ते हुए दक्षिणा चढ़ानी चाहिए :
हिरण्य गर्भ गर्भस्यं हेम बीज विभावसो: ।
अनंत पुण्य फलदं अतः शांतिं प्रयच्छ मे ।।
दक्षिणा चढ़ाने के बाद भगवान धन्वंतरि की प्रदक्षिणा इस भावना के साथ करनी चाहिए- “ हे प्रभु! पिछले जन्मों में मैंने जो भी पाप किये हैं। वह आपकी प्रदक्षिणा करते समय एक-एक कदम पर नष्ट हो रहे हैं । मेरे लिए आपके सिवा कोई दूसरा शरण देने वाला नहीं है। आप मुझ पर दया करें और मेरे पापों के लिए करूणा पूर्वक मुझे क्षमा करें।“ प्रदक्षिणा करते समय यह श्लोक पढ़ना चाहिए-
यानि कानि च पापानि जन्मांतर कृतानि च ।
तानि तानि विनश्यंति प्रदक्षिण पदे-पदे ।।
अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम् ।
तस्मात् कारुण्य भावेन क्षमस्व परमेश्वर ।।
प्रदक्षिणा के बाद भगवान धंवन्तरि को प्रणाम करके उनसे यह प्रार्थना करनी चाहिए कि पूजा करनेवाले के परिवार में किसी को किसी भी तरह के रोग से कष्ट प्राप्त न हो । सब लोग सुखी और नीरोग रहें।