हनुमान के सर्व रोग निवारण मंत्र | Hanuman`s Sarv Rog Nivarak Mantra

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हनुमान के सर्व
रोग
 
निवारण मंत्र

Hanuman`s Sarv Rog Nivarak Mantra


मारूति
नंदन
,
परमवीर, श्रीराम
भक्त हनुमानजी की तंत्र साधना
सदेव फलदायी है । हनुमानजी ! शिव के अवतार माने
जाते हैं और ग्यारहवें रुद्र के रूप में इनकी मान्यता है कहते हैं- मर्यादा
पुरुषोत्तम राम की सेवा करने एवं रावण-वध में उनका सहयोग करने के लिए भगवान राम का
अवतार लेने से पूर्व ही त्रेतायुग में शिवजी ने अपने ग्यारहवें रुद्र के रूप में
अवतार लिया था । वह “हनुमानजी
के पवित्र
लोकोपकारी नाम से विख्यात हुए ।

अवतार लेने से पूर्व “उमाजी” ने उनसे पूछा, “स्वामी
! लंकाधिपति रावण तो आपका बहुत बड़ा सेवक है । उसने अपने दसों शीश काटकर आपके
चरणों में अर्पित कर आपकी अर्चना की है । फिर आप उसके शत्रु रामजी
का
सहयोग करके उसका संहार करने के लिए
हनुमानजीके
रूप में अवतरित क्यों हो रहे हैं
? रावण की
हत्या करके क्या आपको  “भक्त-हंता
का
दोष नहीं लगेगा
?

देवी उमा की बात सुनकर महादेव हंसने लगे और
बोले
,
प्रिये ! भगवान विष्णु मेरे इष्ट देव हैं ।
मैं उनके श्रीचरणों का शाश्वत पुजारी हूं त्रेतायुग में रावणादि राक्षसों का सकुल
संहार करके उनका उद्धार करने के लिए ही वह अयोध्या के महाराज दशरथ के यहां अपनी
सोलह कलाओं सहित पुत्र रूप में अवतरित हो रहे हैं । अतः मैं भी उनकी सेवा करने के
लिए हनुमान के रूप में अवतार ले रहा हूं । जहां तक लंकापति रावण के वघ में सहायक
होकर
भक्त-हंता” के दोष का
प्रश्न है
, तो मैं उसका वध करके भी इस दोष
से मुक्त रहूंगा। क्योंकि उसने अपने दस शीश काटकर मेरे दस रुद्रों की पूजा की थी ।
मेरा ग्यारहवां रुद्र अपूजित रहा। वहीं ग्यारहवां रुद्र उसके वध में सहायक होगा।
फिर मैं उसका वध अपने हाथों से नहीं करूंगा
, भगवान
राम उसका वध करेंगे। अतः दोष का तो प्रश्न ही नहीं उठता है ।

 

हनुमानजी की तंत्र साधना

तंत्र शास्त्र के आदि देवता और प्रवर्तक भगवान
शिव हैं । इस प्रकार से हनुमानजी स्वयं भी तंत्र शास्त्र के महान पंडित हैं ।
समस्त देवताओं में वह शाश्वत देव हैं
|परम विद्वान एवं अमर देवता हैं । वह अपने
भक्त का सदैव ध्यान रखते हैं । उनकी तंत्र-साधना
, वीर-साधना
है । वे रुद्रावतार और बल-वीरता एवं अखंड ब्रह्मचर्य के प्रतीक हैं । अतः उनकी उपासना
के लिए साधक को सदाचारी होना अनिवार्य है । उसे मिताहारी
, जितेंद्रिय
होना चाहिए । हनुमान साधना करने के लिए हर व्यक्ति उसका पालन नहीं कर सकता
,  इसलिए इस
चेतावनी का सदैव ध्यान रखना चाहिए कि हनुमानजी को सिद्ध करने का प्रयास भौतिक सुखों
की प्राप्ति या चमत्कार प्रदर्शन के लिए कभी नहीं करना चाहिए । हनुमानजी के माध्यम
से भगवान राम के दर्शन तथा उनकी कृपा प्राप्त की जा सकती है
|

हनुमत्कृपा प्राप्त करने हेतु कुछ अनुभूत
मंत्र एवं यंत्र यहां प्रस्तुत हैं :

हनुमानजी के दर्शन हेतु

हनुमानजी के दर्शन प्राप्त करने हेतु उनका “द्वादशाक्षर
हनुमत् मंत्र
इस प्रकार
है :

“ हं
अनुमते रुद्रात्मकाय
हुं फट । “

उपरोक्त मंत्र के एक लाख यंत्र के पुरश्चरण से
मंत्र संख्या पूरी होने पर रात्रि के चतुर्थ  प्रहर में प
हनुमानजी
के दर्शन प्राप्त होते हैं । इस मंत्र का
जाप पीपल
वृक्ष के नीचे
, नदी तट अथवा एकांत स्थान
में स्नान करके
, कुशासन पर पदमासन लगाकर
रुद्राक्ष की माला से करना
चाहिए । साधक को मिताहारी तथा ब्रह्मचर्य का पालन करना
चाहिए । इसके द्वारा साधक
को अलौकिक शक्ति प्राप्त होती है । उस शक्ति का
प्रयोग भौतिक सुखों की प्राप्ति में न करके लोक-हितार्थ ही करना चाहिए ।

हनुमत्-उपासक इस मंत्र की शुद्धतम तथा मन से
एक माला नित्य जाप करके भी ऐसी शक्ति प्राप्त कर सकता है और इसके द्वारा वह अनेक
संकटों से मुक्ति प्राप्त कर सकता है ।


हर प्रकार के अनिष्टों का शमनकारक “हनुमत-यंत्र

जब चंद्रमा पुष्य नक्षत्र में हो, रविवार
या गुरुवार के दिन भोजपत्र पर अनार की कलम से अष्ट गंध – लाल चंदन
, श्वेत
चंदन
,
अगर, तगर, कस्तूरी, केसर, कपूर
और गोरोचन को घिसकर तैयार की गयी स्याही से लिखकर उसका शोडशापचार पूजन कर यंत्र को
आम की लकड़ी के पाटे पर स्थापित कर
द्वादशाक्षर
हनुमत्-यंत्र
की १९ माला
का जाप कर   यंत्र को प्राणवान करें ।
तांबे की ताबीज में भरकर मंगलवार के दिन दाहिनी भुजा या कंठ में धारण करें ।

यदि घर में प्रेतबाधा हो तो इस यंत्र को
तांबे के पत्र पर खुदवाकर इसे “पुष्यामृत-योग”
 में प्राण
प्रतिष्ठित कर घर में पूजा स्थान पर रखकर यंत्र का नित्य पंचोपचार पूजन करें । इस
यंत्र के निर्माण का अधिकारी वही साधक होता है
, जिसने
जप व पूजन करके अपने में शक्ति अर्जित कर ली हो । यंत्र देवता स्वरूप होता है अत:
इसे बेचना या दुरुपयोग करना मना है । इससे हानि हो सकती है।

            

शत्रु पर विजय प्राप्ति हेतु

बजरंग-बा
का नित्य प्रातः
स्नान
कर पवित्र होकर पाठ करना अचूक सिद्ध होता है ।


रोग-निवारण के लिए

हनुमान-बाहुक का रोगी की शैया के पास बैठकर
पाठ करना हितकर है ।

शारीरिक-मानसिक रोग, प्रेतबाधा
अथवा किसी के द्वारा अभिचार
 

दिनारी या
मूठ आदि चलाने पर से पीड़ित व्यक्ति पर नीचे
दिए गए मंत्र
से अभिमंत्रित जल छिड़कने मात्र से सब प्रकार के कष्ट दूर होते हैं । मंत्र इस  प्रकार है :

“ ॐ नमो हनुमते पवन-पुत्राय, वैश्वानर
मुखाय- पाप दृष्टि
, घोर-दृष्टि, हनुमदाज्ञा
स्फुरेत-स्वाहा । “

उक्त मंत्र का नियमानुसार नित्य जप करने वाले
साधक के संकट हनुमत्कृपा से चमत्कारिक रूप से स्वतः दूर हो जाते हैं।


पदोन्नति के लिए

प्रातः-सायं श्री हनुमानजी की मूर्ति या
चित्र के सामने इस मंत्र का १०८ बार जाप करें :

ओं
ही हनु हनुमन्ते रुद्रात्मकायै हूं फट् । “

                 

रोग मुक्ति के लिए

सोमवार या मंगलवार को, व्रत
रखने
,
लाल वस्त्र धारण करने तथा केवल एक बार लाल  रंग का भोजन कर श्री हनुमानजी की आराधना करें एवं
मंगलवार के दिन इस मंत्र का जाप १०८ बार करें । निश्चित रूप से लाभ होगा।

ओं
मं मंगलाय नमः ।


व्याधियों से मुक्ति के लिए

हनुमानजी का सच्चे मन से ध्यान कर यदि श्रद्धापूर्वक
इस मंत्र का प्रतिदिन जाप किया जाए
, तो तत्काल
फल मिलता है । जापकर्ता
स्नादि से पवित्र होकर किसी स्वच्छ स्थान  पर बैठकर हनुमानजी का भक्तिपूर्वक ध्यान करे और
अपनी समस्या उनके समक्ष रखे और कष्ट निवारण की प्रार्थना करते हुए नीचे लिखे मंत्र
का जाप करे :

“ अंजनी गर्भ सयप्यू, सुग्रीव
सचिवोत्तपः ।

राम प्रिय नमस्तुभ्यं, हनुमत
पाहिमो सदा ॥ “

 

नवरात्रि में प्रतिदिन ब्रह्ममुहूर्त में
स्नानदि से
पने
निवृत्त होकर शुद्ध वस्त्र एवं मन से कुशासन पर बैठकर स्तोत्र का पाठ करना चाहिए ।
श्री हनुमानजी के रूप का ध्यान कर पाठ कम-से-कम ग्यारह या सात बार करें ।


प्रेत-मुक्ति के लिए

“ ओम हं
पवन वन्दनाय स्वाहा । “

इस मंत्र के जाप से भयंकर प्रेत को भी भगाया
जा सकता है । किंतु पाठ निरंतर चलना चाहिए । प्रतिदिन १०
घंटे यह
जाप चलना चाहिए । जाप के दौरान प्याज
, लहसुन, शराब
तथा अंडे आदि का स्पर्श भी वर्जित है । मंत्र जाप के समय माला कटि प्रदेश से ऊपर
ही रखनी चाहिए । ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें अन्यथा प्रेतों का हमला पुनः हो सकता
है। 
      

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