आज से
लगभग 24 साल पहले दिनांक 21 सितंबर 1995 (गुरुवार), जैसे जैसे सुबह हुई, वैसे-वैसे एक अजीब बात
सामने आई | हर तरफ बस एक ही बात फैलते जा रही थी की देवी और देवताओ की मूर्तिया
दूध पी रही है और धीरे-धीरे यह बात समूचे भारत में फैल गई | भारत को क्या, इस घटना को पुरे एशिया और
दुनिया के कई स्थानों पर देखा गया |
लोग मंदिरो मे दूध पिलाने के
लिए लाईन लगाए खड़े थे | मंदिर तो मंदिर, लोगो के घरो की मूर्तिया भी दूध पीने लगी थी | चम्मच मे दूध को लेकर मूर्तियो
के मुह मे लगते ही दूध ऐसा गायब हो रहा था जैसे की कोई मुह से एक सास मे दूध पी रहा
हो, हो सकता है यह दृश्य हममे से कई लोगो ने देखा हो या ना भी देखा हो पर जो भी था सच था |
इस घटना को अगले दिन अर्थात
22 सितंबर 1995 को दुनिया भर से अखबार मे प्रकाशित किया गया | ये बात सितंबर 1995 की है, जब सोशियल मीडिया जैसी चीजे आसानी से अपने हाथ मे नही थी | लोगो के पास मोबाइल बहुत
ज्यादा नही थे और थे भी तो उनमे कैमरे नही थे |
वैज्ञानिको ने इस संबन्धित जानकारी इकटठा करना शुरू कर दी | कुछ का
कहना था की मिट्टी के मूर्ति दूध को सोख रही है, पर अंत मे निष्कर्ष
निकला की मूर्ति मिट्टी की हो या संगमरमर, प्लास्टर आफ पेरिस
या पत्थर, दूध तो सभी पी रहे थे | कुछ का कहना था की दुध चम्मच से नीचे गिर रहा है, मगर ऐसा कुछ भी नही था |
यह चमत्कार था जिससे वैज्ञानिक भी हैरान थे। वैज्ञानिकों ने
भी यह बात मान ली थी कि यह कोई दैवीय चमत्कार था जिसके बारे में जानकारी एकत्र करना विज्ञान के क्षेत्र से बाहर है।
जो भी था, पर था तो सच
इसलिए कहा गया है “मानो तो भगवान न मानो तो पाषाण”