जब तक कोई बात इंद्रियो और अंतरात्मा
के द्वारा समझ नही ली जाती तब तक उसके बारे मे विश्वास नही होता है | दुनिया मे प्रायः दो तरह के व्यक्ति होते है
– एक नास्तिक और दूसरे आस्तिक | ये दोनों एक दूसरे के विरोधी
होते हुए भी एक दूसरे पर निर्भर करते है | इन दोनों का आपस मे
परस्पर संबंध होता है | विचारो के संतुलन बनाए रखने के लिए दोनों
जरूरी है |
हस्तविज्ञान के समर्थन के लिए
चिकित्साशास्त्र तथा विज्ञान से संबंध रखने वाले अनेक तथ्य मिलते है जिनमे यह स्पष्ट
हो जाता है की हाथ एक स्त्रोत मात्र है जो प्रभाव पड़ता है हाथो मे भी वही प्रभाव दिखाई
देता है | जब हम मस्तिष्क
की रहस्यपूर्ण क्रियाशीलता और पूरे शरीर पर पड़ने वाले उसके प्रभाव के बारे मे विचार
करते है, तो हमे ये जानकार कोई आश्चर्य नही होता है की वैज्ञानिक
जिन्होने पहले यह प्रमाणित किया था, की जितनी शिराए मस्तिष्क
और हाथो के बीच मे है, उतनी पूरे शरीर मे कही नही है | वे अब अपने अनुसंधान के आधार पर यह निर्णय देने को तैयार है की हाथ के बिना
मस्तिष्क कोई विचार नही कर सकता है, क्योकि विचार के प्रभाव की
अनुभूति हाथ के माध्यम से ही मस्तिष्क को होती है | यदि हम केवल
इसी दृष्टि से हस्तविज्ञान को देखे तो उसकी वास्तविकता हमे अकारण और असंगत नही लगेगी
|
तो आईये प्रारम्भ करते है हस्तरेखा
के बारे मे अध्ययन करना :