मकर संक्रांति कैसे बनाएं | मकर संक्रांति पर निबंध | Makar Sankranti Katha in Marwadi

मकर संक्रांति कैसे बनाएं | मकर संक्रांति पर निबंध | Makar Sankranti Katha in Marwadi


पौष महीना म कभी भी मल ला ग । मल म कोई शुभ काम कोनी कर । मल लाग न क पन्द्रह दिन बाद कभी भी, तेरा का बड़ा-पकोड़ा बना कर, चील-कागला न, डकोतां न, नोकरां न खिला व । पिछ शुभ काम कर ।

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मकर सक्रान्ति


पौष या माघ महीना म बड़ी ‘संक्रान्ति’ आ व । इ दिन गंगाजकी नहा व । काला तिल का लड्डू, दाल-चावल मिला कर और घेवर दान कर । एक घेवर पर दाना का लड्डू, सफेद तिल का लड्डू, आटा-गुड़ का लड्डू और रूपिया रख कर, बाने निकाल कर सासुजी न पगां लाग कर दे व । आकी बहन-बेटियां क भी इसी तरियां बानो और संक्रान्ति क नेग का लाड्डू-घेवर भेज । संक्रान्ति का तीन-सौ-आठ नेग हो व ह, जि क म स आपको मन हो व, सो नेग कर । कुछ नेग तो अ ठ लिख्या ह और बाकी का ब्राह्मणां न पूछ कर कर ले व ।

लड़की स ब्याहवली साल ‘धाट-पाट’, ‘कोठी मुट्ठी’, चिड़िया मुट्ठी’ का नेग करा व । दूसरी साल इनाका उजमन करा दे व । अगर ब्याहवली साल को संक्रान्ति को भी उजमन कराता हो व, तो लड्डू, घेवर, ओढ़नो, कबजो और रुपिया पर बाणो निकाल कर सासुजी न पगां लाग कर दे व ।

घाट पाट


घाट पाट सींचनो इ संक्रान्ति स शुरू कर । आपका घर क साम न थोड़ो गोबर रख कर, पहले जल का छांटा दे व, रोली की सात टिक्की देव और चावल चढ़ा व । पि छ गोबर क आ ग जल सींचती जा व और बोलती जा व- ‘सीचूंगी घाट पाट, पाऊँगी राज पाट’ बारह महीना रोजिना आईयां ही पूजा कर। अगर रोज नहीं हो सक तो हर महीना की संक्रान्ति क दिन, तीस दिन की एक साथ ही पूजा कर ले व । साल भर पूरो हो न क बाद बड़ी संक्रान्ति न इ को उजमन कर दे व उजमन म एक आढनो, कबजो, एक चान्दी क लोटा म मेवो घाल कर और रुपिया पर बाणो निकाल कर सासुजी न पगां लाग कर दे व ।

चिड़िया मुट्ठी


इ संक्रान्ति स अगली संक्रान्ति तक रोजिना एक मुट्ठी चावल चिड़ियां न दे व । रोजिना नही हो सक, तो हर महीनां की संक्रान्ति क दिन तीस मुट्ठी एक साथ ही दे दे व । दूसरी बड़ी संक्रान्ति क दिन इ को उजमन कर दे व । उजमन म एक चान्दी की चिड़िया, चावल और रुपिया पर बाणो निकाल कर सासुजी न पगां लाग कर दे व ।

कोठी मुट्ठी


इ संक्रान्ति स अगली संक्रान्ति तक रोजिना एक मुट्ठी चावल एक बर्तन म घालती जा व । बर्तन भर जाव तो चावल ब्राह्मणां न देती जा व । दूसरी बड़ी संक्रान्ति न ई को उजमन कर दे व । उजमन म एक टोपिया म चावल और रुपिया पर बाणो निकाल कर सासुजी न पगां लाग कर देव ।

भगवान का पट खुला व


मंदिर म एक पड़दो और मिठाई-रुपिया ले जा व । पहले पड़दो लग वा दे व, पिछ ऊ न खुलावा कर मिठाई को भोग लगा व, रुपिया चढ़ा व, खुला न को भजन गा व ।

सुत्यो सुसरो जगा व


सुसरोजी पलंग पर सो जा व । बहू पलंग का चारू पागा न नरियल स खुड़का व । सुसरोजी उठ कर बैठ जा व । बहू ऊना क आ ग लाड्डू, घेवर और रुपिया र क्ख । सासुजी न पगां लाग कर रुपिया, देव । सुसरोजी बहू न गहना-रुपिया दे व । बहू सुसरो जगा न का गीत गुवा व । अगर पीर स लुगांया आव, तो सुसरोजी न दे न का लाड्डू घेवर, रुपिया ब ल्या व । सगियां न मिलाई दे व । जंवाई क तिलक कर । अठी न सासुजी संगियां की वारी फेरी कर । गीतां वाली मिसरानियां न रुपिया दे व ।

थाल परो स


दादसरोजी, सुसरोजी, तायसरोजी, पितसरोजी, जेठजी, नानसरोजी, मामसरोजी कोई का भी थाल परो स । बहू ऊँना क आ ग मिठाई घाल क जीमण परो स । ब बहू न गहना-रुपिया दे व ।

सासुजी न तील पहरा व


सासुजी न तील पहरा क, रुपिया दे कर पगां ला ग ।

सासुजी न सीड़िया चढ़ा व


सासुजी न सीड़िया चढ़ा व, जद बहू हर सीढ़ी पर रुपिया रखती जा व और सासु उठाती जा व । पिछ सासुजी क पगां लाग कर रुपिया और देव ।

सासुजी न माठी दे व


बहु सासुजी न माठी पर रुपिया रख कर दे व और बो ल- ‘लेओ सासुजी माठी, दिखाओ थारी गांठी’ । सासुजी आलमारी म स बहू ब गहना-रुपिया दे व ।

जेठ न भेंट


जेठनी क आग एक थाली म मिठाई और रुपिया लेजा कर र क्ख । जीठानी क एक घेवर पर रुपिया दे कर पगां ला ग । जेठजी बहू न रुपिया देव ।

देवर न घेवर देव


देवर न घेवर क ऊपर रुपिया रख कर देव ।

आवल चावल खुंटी चोर


पहले नन्दां न जीमा व, चावल जरूर घा ल । पि छ खुंटी पर साड़ी-कबजा टांग दे व । भाभी नन्दा न क व-आवल चवल खूंटी चीर, दिखाओ बाईजी थारो बीर। नन्दा क व- ‘जिम्या चावल ओडया चीर, देखो भाभी म्हारो बीर’ । या बात कह क आप क भाई न दिखा दे व । भाभी नन्दा क पंगा लाग कर रुपिया दे व औ खूंटी पर टांगेड़ा साड़ी-कवजा दे व ।

ननद की प स भ र


ननद को हाथ रुपिया स कर बोल- ‘भ र प स ननद हँस’ ।

नणदोई को क्षोलो भ र


नणदोई का कपड़ा, दुशालो या डुपट्टो, लाड्डू, मेवा, घेवर, एक नारियल, रुपिया और आप क परिवार न लेकर नणदोई क घरां गीत गाता झोलो भर न जा व । नणदोई न दुशालो या दुपट्टो ऊड़ा कर, मेवा स पल्लो भर कर रुपिया नारियल देकर टिको काड । नाणद क रुपिया देकर पगां ला ग । सगियां न मिलाई दे व । नणदोई की मां सगियां की वारी फेरी कर, मिसरानियां न रुपिया दे व ।

जेठूता न जलेबी द व


चार जलेबी पर कटोरी म दही और रुपिया जेठूता ना देकर बो ल- ‘चार जलेबी उपर धई, जेठ को बेटो चाची कही’ ।

गोजियो भ र


कुंवारी नणदां, जेठूतियां, भानजियां को गोजियो भ र । उनां न कपड़ा दे व, मेवा स पल्लो भ र ।

पति का नेग


(१) आधा गट भ दाख भर ऊपर रुपिया रख कर पति न दे व और बोल- ‘बेलो भर्यो दाखां को, सांई पायो लाखां को’ ।

(२) चार जलेबी, पान और रुपिया दे व ।

दोघड़ ल्या व


लड़को हो जिकी साल पीर स या बहन-भायली क स दोघड़ ल्या व । एक माटी क घड़ा म जल भर क, ऊँक ऊपर चांदी का लोटा म जल भर क, ऊँक ऊपर कबजे-रुपिया रखकर साथियो क र । पल्ला म मेवो और हाथ म चांदी की घंटी म सूत लपेट कर, एक चाबी घाल कर, सा ग दोघड़ लेकर सास र जापा का गीत गाता जा व । सास र जाकर दोघड़ की पूजा कर क, घड़ो तो पैन्डा म रख दे व और चांदी को लोटो, कबजो, रुपिया सासु न पगां लाग कर दे दे व । पीर की लुगायां सा ग जा व, तो सगियां न मिलाई दे व, जवांई क तिलक कर, बाई क टाबरां न रुपिया दे व ।

ब्राह्मणा का नेग


(१) एक पतीली म धई-रुपिया झेरनो और रस्सी दे व ।

(२) तेरह छाजलाम गेहूँ, साड़ी, कबजो और रुपिया पर हाथ फेर कर देव ।

(३) ब्राह्मणी क सीर म तेल घाल कर, तेल, कंघो, दर्पण और मांगटीको देव ।

(४) ब्राह्मणी क मैहन्दी लगवा कर अंगुठी दे व ।

(५) ब्राह्मणी न नुहा कर, कपड़ा, बाल्टी, लोटो और रुपिया देव ।

(६) तेरह बक्स दे व, एक-एक म मर्दा का, लूगायां का, बच्चा का कपड़ा, गहना, बर्तन, सुहाग को समान, गीताजी, माला और रुपिया घाला क देव

(७) ब्राह्मणी न बारह महीना तक जीमा कर, कपड़ा और रुपिया देव ।

(८) तेरह टोपिया म गेहूँ और रुपिया दे व । एक चक्की देव।

(९) तेरह बुगचियां म आंगी, सुहाग को समान और रुपिया घाल कर देव ।

(१०) ब्राह्मणा न जिमा व ।

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