नबी की कहानी | स्त्रियों से विवाद की कहानी | Nabi Ki Kahani Hindi
उस समय अरबनिवासियों में स्त्रियाँ बहुत तुच्छ गिनी जाती थीं । वह उनके लिये विलास-सामग्री और काम करने की मशीन थीं । उनको अधिकार नहीं था, कि पुरुष की किसी बात का उत्तर दे । किन्तु हजरत ने अपनी स्त्रियों को बहुत कुछ स्वतन्त्रता दे रखी थी । कहावत है कि एक समय ‘उमर’ की पत्नी ने अपने पति को कुछ सलाह दी । अरब की प्रकृति के अनुसार ‘उमर’ ने कहा-“इससे तुम्हारा कुछ सम्बन्ध नहीं।“ पत्नी ने कहा- “तुम्हारी लड़की ‘हफ्सा’ क्यों हज़रत को उत्तर पर उत्तर देतीं जाती है, यहाँ तक कि वह अप्रसन्न तक हो जाते हैं, किन्तु तुम नहीं चाहते कि मैं ऐसे विषयो में तुम्हें कुछ परामर्श दू ।“
यह सुनकर उमर को ‘हफ्सा’ पर बड़ा क्रोध हुआ । उन्होंने तुरंत जाकर ‘हफ्सा’ से ऐसा न करने को कहा । जब यही परामर्श उन्होंने नवी की एक दूसरी स्त्री, ‘उम्मसल्मा’ को देना चाहा, तो उसने रूखा सा उत्तर दिया –
आयशा और हफ़सा का नबी से झगड़ा
नबी की स्त्रियो की बातों में तुम्हें दखल देने का कुछ अधिकार नहीं।’ महात्मा की स्त्रियो को सचमुच दूसरी स्त्रियों से बहुत स्वतन्त्रता प्राप्त थी । वह उनकी बातों का भी बड़ा ख्याल किया करते थे । एक समय की बात है, कि हज़रत बिना बारी के ‘जैनब’ के घर में जाकर मधु खाई । इसे आयशा और हफ्सा सहन न कर सकीं । उन्होंने चिढ़ाने के लिये महात्मा से कहना आरम्भ किया-“मधु की गन्ध आती है।“ इस पर हफ़रत ने मधु का सर्वदा के लिये शपथपूर्वक परित्याग कर दिया । किन्तु कहीं मुसल्मान लोग भी मधु को निषिद्ध न समझ लें, इसलिये उन्हें आदेश हुआ –
“हे नबी ! जो तेरे लिये विहित है, क्यों तू उसे निषिद्ध करता है ? तू अपनी पत्नियों की प्रसन्नता चाहता है ? ईश्वर कृपालु और क्षमाशील है । अपनी शपथों को तोड़ डालना, ईश्वर तुम्हारा कर्तव्य ठहराता है।” (६६:१:१,२)
बहुविवाह का दुष्प्रभाव एवं सपत्नि-कलह प्रसिद्ध ही है । जरा एक पत्नी से अधिक वर्तालाप होते देखा नहीं, कि दूसरा जलने लगती थी । एक बार ‘आयशा’ और हफ्सा’ ने ऐसा हीं विवाद उठाया; और वह यहाँ तक बढ़ा कि अन्त में कुरान को इसके बारे मे उपदेश देना पड़ा –
“अगर तुम दोनों प्रभु के पास पश्चात्ताप करती हो, तो तुम्हारे हृदय विनम्र हो गये । परन्तु यदि तुम दोनों उस (मुहम्मद) पर चढाई करो, तो निश्चय परमात्मा, जिब्रील साधुशील मुसल्मान और देवदूत उसके सहायक उसकी पीठ पर हैं । यदि अभी नबी तुम्हें परित्याग कर दे तो इसके बदले परमात्मा उसे तुमसे अच्छी पत्नियाँ देगा, जो कि आज्ञाकारणी, विश्वासिनी, अभ्युत्थानशीला, सेविका, व्रत करने वाली और कुमारी होगी।“ (६६:१:३ ४)
बिना बुलाए घर में जाना निषिद्ध
“नबी की स्त्रियाँ तुम्हारी माताएँ हैं” , यह लिखा भी जा चुका है। इस वाक्य ने ही, प्रेरित की विधवा स्त्रियो से मुसल्मानों का विवाह होना अयुक्त ठहराया ।
उस समय के साधारण अरब-निवासियों के दुराचार को देखते हुए, मुसल्मानों के आचरणों पर विशेष ध्यान दिया गया । अपने आचरण से इस्लाम के महत्व का प्रचार करना प्रत्येक मुसल्मान का कर्तव्य ठहराया गया । उनका दूसरी स्त्रियों से अधिक सम्पर्क होना निषिद्ध कर दिया गया । स्वयं अपने गुरू घर में भी अनावश्यक आना, रोक दिया गया । कहा है –
“भोजन के लिये, जब तक बुलाये न जाओ; नबी के घर में प्रविष्ट न हो । और जब भोजन कर चुको, तो चले जाओ । गपशप आपस में मत करते रहो, क्योंकि तुम्हारे इस व्यवहार से नबी को कष्ट पहुँचता था, किन्तु वह तुमसे कहने में संकोच करता था ।” (३३:७:१)