पीपल का उपयोग | पीपल पूजा के नियम | पीपल के पेड़ का महत्व | पीपल ट्री बेनिफिट्स | Peepal Tree Benefits

पीपल का उपयोग | पीपल पूजा के नियम | पीपल के पेड़ का महत्व | पीपल ट्री बेनिफिट्स | Peepal Tree Benefits

पीपल सदियों से हमारी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण और अभिन्न अंग रहा है । इसीलिए भारत का सर्वोत्तम पुरस्कार “भारत रत्न” कांसे से बने पीपल के पत्ते के रूप में प्रदान किया जाता है । विष्णुपुराण के अनुसार, पीपल में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों महादेवों के अंश विद्यमान हैं ।

पीपल की जड़ों में ब्रह्मा, तने में विष्णु तथा इसके ऊपर के भाग में शिव का वास माना जाता है । इसलिए सदियों से भारत में पीपल की ठंडी छांव हमारे ग्रामीण समाज का हिस्सा रही है । मंदिरों के प्रांगण, गांव के चौराहों, चबूतरों आदि को पीपल का पेड़ सदा ही न केवल शुद्ध करता था, अपितु उसका एक महत्वपूर्ण अंग भी था, जिसकी शीतल छांव तले बैठकर गांव के बड़े-बूढ़े पंचायत करके गांव की समस्याओं का हल ढूंढते और न्याय करते थे ।

पेड़-पौधों के लिए मिट्टी-पानी बहुत आवश्यक है, बिना इन दोनों के वह पनप ही नहीं सकते, पर पीपल सबसे निराला है । यह घरों की पथरीली दीवारों, उनकी दरारों, कुएं के अंदर, ऊंचे गुंबजों की चोटियों पर, यहां तक कि खंडहरों में उग आता है । ऐसा इसलिए संभव है, क्योंकि पीपल की जड़ें जब तक जमीन में अपनी पकड़ नहीं बनातीं तब तक इसके पत्ते अपना आहार हवा की नमी व वर्षा के पानी से ही प्राप्त कर लेते हैं और जीवित रहते हैं ।

बरगद के पेड़ की तरह पीपल को भी बोने की आवश्यकता नहीं होती । पक्षी इसके फल खाकर जहां-कहीं भी बीट कर देते हैं, पीपल वहीं बिना खाद-पानी के उगकर आकाश छूने लगता है । प्रकृति ने पीपल की जड़ों को इतना सशक्त बनाया है कि वे पथरीली भूमि व पत्थरों तक को भेदकर जमीन के बीच दूर-दूर तक फैल जाती हैं । यही कारण है कि पीपल के पेड़ों को बड़े-बजुर्ग घर के अंदर लगाने से मना करते हैं, क्योंकि इसकी लोहे जैसी मजबूत जड़ें मकान की नींव को उखाड़कर क्षति पहुंचा सकती हैं ।

प्राचीन प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य एवं खगोलशास्त्री वराहमिहिर के अनुसार, पीपल घर के बाहर सामने लगाना शुभ होता है । परन्तु वास्तुशास्त्र के अनुसार घर की पश्चिम दिशा की ओर पीपल का वृक्ष शुभ माना जाता है । पीपल का घर के पूर्व भाग में होना अशुभ है ।

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वैज्ञानिक दृष्टि से पीपल वृक्षों में सर्वश्रेष्ठ है । परीक्षणों द्वारा अब यह सिद्ध हो चुका है कि जितनी अधिक ऑक्सीजन पीपल का वृक्ष छोड़ता है, उतनी संसार का और कोई वृक्ष नहीं छोड़ता । हां, पौधों में यह गुण केवल तुलसी में है, इसलिए तुलसी भी पूजनीय है । प्रायः पेड़ दिन में ऑक्सीजन और रात में प्राणघातक नाइट्रोजन छोड़ते हैं । पर पीपल तो चौबीसों घंटे ही प्राणदायिनी ऑक्सीजन देता है । पीपल के पेड़ की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि अंतरिक्ष और पृथ्वी के बीच सभी विषैली गैसों को शुद्ध करके उन्हें ऑक्सीजन के रूप में प्राणियों के लिए छोड़ता है । पीपल को प्रकृति ने ऐसी क्षमता दी है कि वह विषैली वायु जैसे कार्बन डाइऑक्साइड को शुद्ध करके ऑक्सीजन के रूप में प्राणियों के कल्याण के लिए छोड़ता है और उसका विषैला भाग अपने पास रख लेता है या पचा जाता है । वायु के विषैले भाग को अपने पास रखना ही पीपल का शिव रूप है। यह गुण भी किसी अन्य वृक्ष में नहीं है । अपने इन्हीं गुणों के कारण पीपल को वृक्षों का राजा कहा गया है और यह एक कल्याणकारी वनस्पति माना गया है ।

पीपल के पेड़ की यह विशिष्टता उसके पत्तों की बनावट के कारण है । प्रकृति ने पीपल के पत्तों को बड़ी दक्षता से बनाया है । इसके ऊपरी भाग को देखने से ऐसा लगता है मानो किसी बलिष्ठ पुरुष के चौड़े कंधे हों और जिनका निचला भाग योद्धा कृष्ण की पतली मजबूत कमर के समान हो । पत्तों का अंतिम छोर सूई की तरह नुकीला होता है, जो प्रकृति की इंजीनियरिंग का एक अद्भुत नमूना है । पत्तों पर जब भी वर्षा का पानी गिरता है तो वह तुरंत ही फिसलकर उस सूई की नाकवाले हिस्से से नीचे गिर जाता है और पत्ता सूख जाता है । पत्तों का सूखा रहना वृक्ष के लिए अच्छा होता है । इस प्रकार की बनावट अन्य किसी वृक्ष के पत्तों में नहीं देखी जाती ।

यदि आप पीपल के पत्ते को सुखाएं तो देखेंगे कि उसमें अनगिनत बारीक नसों का एक जाल-सा है । ये नसें ही पीपल को ऑक्सीजन उत्पन्न व प्रवाहित करने में सहायक होती हैं । पीपल के पत्ते वृक्ष की टहनी के साथ एक लंबी-पतली डंठल के साथ बारीकी से जुड़े होते हैं । यह लंबी डंठल प्रकृति ने विशेष प्रयोजन से पीपल के पत्तों को प्रदान की है । इस पतली डंठल के कारण पीपल के पत्ते थोड़ी सी हवा चलने पर एकदम ऐसे नाचने लगते हैं मानो कोई संगीतकार तबले पर थाप दे रहा हो । पत्तों के इस प्रकार हलकी सी हवा से डोल पड़ने के कारण पीपल को चलदल या चलपत्र भी कहा जाता है ।

पत्ते एक नर्तकी की भांति चारों ओर घूमते हैं, या डोलते हैं तो वे ऐसा करके अपने आस-पास हवा में जो जलकण होते हैं उन्हें अपनी ओर खींचकर अपने में समाविष्ट कर लेते हैं और इस प्रकार वे वृक्ष के पोषण में भी भाग लेते हैं । यह एक गहरा विज्ञान है, जो पीपल से जुड़ा है । शायद इसीलिए गीता में कृष्ण ने वृक्षों में ‘मैं ही पीपल हू’, ऐसा कहा है । इसे वृक्षों में सर्वश्रेष्ठ कहा गया है, और शायद इसी कारण धर्मग्रंथों में पीपल के हर पत्ते पर देवताओं का वास बताया गया है ।

पीपल में एक अन्य विशेषता यह है कि इसके पत्ते कितने भी घने क्यों न हों फिर भी इसके नीचे दिन में कभी अंधेरा नहीं होता, क्योंकि इसके पत्ते प्रायः जरा सी हवा में भी हिलने-डुलने लगते हैं । इस कारण सूर्य की किरणें छन-छनकर पीपल तले धरती पर सतत उतरती रहती हैं और वहां कभी अंधेरा नहीं होने देतीं । एक बात और, वह यह है कि सूर्य की किरणें जब उसके पत्तों पर आती हैं तो यह ठंडा करके ही उन्हें धरती पर आने देता है, जिसके कारण पीपल की छांव सदा ठंडी होती है और उसके नीचे बैठकर प्राणी अपनी थकान शीघ्र ही मिटा सकते हैं ।

प्राय: यह देखा गया है कि पेड़-पौधों पर फल लगने से पहले फूल आते हैं, पर पीपल पर सीधे ही फल आते हैं, फूल नहीं; क्योंकि इसका फूल फल में छिपा हुआ होता है । इसी कारण पीपल का एक और नाम ‘गुह्यमपुष्पक’ भी है । फल बरगद के फल की ही तरह गरमी के दिनों में पकता है ।

पीपल की कई प्रजातियां हैं, जिनके कारण उनकी बनावट व पत्तों के रंगों में अंतर होता है। कुछ पेड़ सीधे और लंबे होते हैं, जबकि कुछ अधिक लंबे न होकर फैलाव में अधिक होते हैं और छतरी की तरह नीचे को झुके रहते हैं । ऐसे पेड़ बड़े-बूढ़ों की तरह आशीर्वाद देते-से लगते हैं । प्रायः ऐसे ही पीपल की पूजा होती है ।

पीपल के पेड़ों का काटना या गिराना पाप माना जाता है । पीपल के महत्व को ध्यान में रखते हुए ऋषि-मुनियों ने इसे न काटने का विधान बनाया और धार्मिक मान्यता दी । इसके अतिरिक्त पीपल लगाना एवं इस वृक्ष की रक्षा करना व साफ-सफाई करना भी पुण्य का कार्य माना जाता है । इसके लिए लोग पीपल के पेड़ के चारों और गोलाई में चबूतरा बना देते हैं और पीपल की पूजा करते हैं । यदि हम पीपल को काटते हैं तो उस स्थान का वातावरण असंतुलित हो जाएगा और वायु प्रदूषण को बढ़ाएगा । इस कारण पीपल को काटना निषेध है ।

सनातन काल से पीपल के पेड़ का बुद्धि व बुद्धिमत्ता से संबंध रहा है । नदियों के किनारे पीपल की छांव तले ऋषि-मुनि ध्यान लगाते और दैविक ज्ञान अर्जित करते थे । पीपल के नीचे का वायुमंडल मन को शांत करने में सहायक होता है, इसी कारण मस्तिष्क क्रिया शीघ्र एकाग्र हो जाती है, जो ध्यान योग में सहायता करती है । संभवतः इसी कारण पीपल के पेड़ को बोधिवृक्ष भी कहा गया है । गौतम बुद्ध को पूर्ण ज्ञान पीपल के पेड़ के नीचे ही प्राप्त हुआ था । सच्चा ज्ञान व सुख कैसे प्राप्त हो, इस सत्य की खोज में वे जगह-जगह देश में घूमे; पर उन्हें इस सत्य का ज्ञान न हुआ । अंत में जब वे मगध राज्य के गया नामक नगर में पहुंचे तो एक पीपल के पेड़ के नीचे इस संकल्प से कि वे जब तक पूर्ण ज्ञान प्राप्त नहीं कर लेते, वहां से नहीं उठेंगे और वहीं ध्यानस्थ हो गए । कई दिन ध्यानमग्न रहने के बाद पूर्णमासी के दिन उनकी तपस्या सफल हुई और उन्हें उस प्रश्न का उत्तर प्राप्त हो गया, जिसकी तलाश वे वर्षों से कर रहे थे । तभी से गौतम ‘बुद्ध’ कहलाए जाने लगे । उन्हीं का चलाया गया बौद्ध धर्म आज चीन, जापान, म्यांमार, मलाया, श्रीलंका, थाईलैंड, तिब्बत, भूटान आदि एशिया के अनेक देशों में प्रचलित है ।

भगवान् बुद्ध ने पूर्ण ज्ञान पीपल के वृक्ष के नीचे प्राप्त किया था, अतएव बौद्ध देशों में यह वृक्ष पवित्र माना जाता है । जहां उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ था, वह स्थान अब ‘बोधगया’ के नाम से जाना जाता है । आज भी वहां यह वृक्ष मौजूद हैं, जिसके नीचे भगवान् बुद्ध बैठे थे । इस वृक्ष से उत्पन्न कई पौधे तथा इसकी टहनियां बौद्ध काल से अब तक कई देशों को भेजी गई हैं । सम्राट अशोक ने जो पौधा अपने पुत्र-पुत्री द्वारा श्रीलंका भेजा था, वह इसी बोधि वृक्ष का ही था ।

पीपल की छांव और इसके पत्तों से छनी हुई हवा मस्तिष्क को चेतना और ताजगी देती है । अथर्ववेद में लिखा है ‘यात्राश्वत्था… प्रतिबुद्ध अभूतन’ अर्थात् जहां अश्वत्थ (पीपल) के वृक्ष होते हैं वहीं प्रतिबुद्धता होती है । प्राचीन ग्रंथों के अनुसार यदि कोई व्यक्ति वसंत के मौसम में कुल पांच पके पीपल-फल प्रतिदिन सेवन करे तो उसकी स्मरण-शक्ति तीव्र होती है । महर्षि दयानंद, जिन्हें व्याकरण, निरुक्त, छंद व अनेक धर्मशास्त्र कंठस्थ थे, ऋतु के समय पीपल के फलों का सेवन करते थे । प्राचीन काल में गुरुकुलों की कक्षाएं पीपल के पेड़ों के नीचे लगती थीं, जहां विद्यार्थी उसकी शुद्ध व स्मरण शक्तिवर्धक वायु में वेद-पाठ कंठस्थ करते थे ।

श्रीकृष्ण पीपल की महिमा से भली-भांति परिचित थे, शायद इसीलिए उन्होंने जब अपनी जीवन-लीला पृथ्वी पर समाप्त करने की सोची तो मृत्यु के लिए उन्होंने पीपल की छांव को ही चुना और उसके नीचे ही अपने प्राण त्यागे । पीपल का एक आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि इसका नित्य स्पर्श शरीर में रोग प्रतिरोध की क्षमता बिना किसी टॉनिक के बढ़ा देता है । यही नहीं, इससे अंतर्मन की शुद्धि होती है और मनुष्य के दब्बूपन का नाश होता है, साथ ही उसका आत्मविश्वास भी बढ़ता है । निरंतर पीपल-पूजन से मनुष्य के शरीर के आभामंडल का शोधन होता है तथा उसकी विचारधारा में धनात्मक परिवर्तन होता है । पीपल का स्पर्श करते समय मन में ऐसी मंगल भावना करनी चाहिए कि ‘हम तेजस्वी हो रहे हैं और हमारी बुद्धि का विकास हो रहा है।’ मंद बुद्धिवाले व्यक्ति व बच्चों के लिए पीपल का शाश्वत स्पर्श विशेष लाभदायी है । पीपल का स्पर्श मनुष्य का आलस्य भी दूर करता है ।

शायद इन्हीं कारण से रावण जैसे ज्ञानी व राक्षसराज ने लंका में पीपल के वृक्ष लगवा रखे थे । सम्राट अशोक ने भी असंख्य पीपल वृक्ष पूरे भारत में सड़कों के दोनों ओर लगवाए थे । सड़क के किनारे पीपल के वृक्षों को लगवाने का अशोक का एक बड़ा कारण यह था कि उनकी घनी व ठंडी छांव राहगीरों की थकान शीघ्र दूर कर देती थी और उन्हें उत्तर भारत की गरमी की कड़ी धूप से भी बचाती थी । इसके अतिरिक्त पीपल से सड़कों का रक्षण भी होता था, क्योंकि पीपल की जड़ें दूर-दूर तक जमीन में नीचे गहरी फैली रहती हैं, इसलिए वृक्षों के आसपास की भूमि का वर्षा ऋतु में कटाव कम होता है । सम्राट अशोक ने पीपल की धार्मिक महत्ता के अलावा इसके सामाजिक पहलू को भी ध्यान में रखकर इसके पेड़ सड़कों के दोनों ओर लगवाए ।

पीपल न केवल भारत में अपितु अन्य कई देशों- म्यांमार, श्रीलंका, नेपाल, चीन, जापान, मलाया, भूटान, थाईलैंड आदि में एक पूजनीय वनस्पति है, जिसका मुख्य कारण इस वृक्ष का भगवान् बुद्ध के जीवन से जुड़ा होना है ।

पीपल से संबंधित मान्यताएं – पीपल से संबंधित कई मान्यताएं भी हैं । एक तो यह कि निरंतर पीपल पूजन से मनुष्य के शरीर का आभा मंडल का शोधन हो जाता है । पीपल के नीचे बैठकर दीया जलाने व काले तिल अर्पण करने से शनि व राहु गृहों का कुप्रभाव भी दूर होता है । नीचे न तो कभी झूठ बोलना चाहिए और न ही किसी को धोखा देना चाहिए । ऐसा करने वाले का अनिष्ट होता है, क्योंकि पीपल में वास करने वाली पवित्र आत्मा उस झूठ या धोखे की साक्षी बन जाती है और प्रकृति उसे तुरंत दंडित करती है । पहले लोग अनिष्ट के डर से बाजारों में पीपल के पेड़ नहीं लगाते थे ।

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