पीर अली खान पर निबंध । Pir Ali Khan in Hindi

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पीर अली खान पर निबंध । Pir Ali Khan in Hindi

मुगल-साम्राज्य के अन्त होने के पश्चात् भारत वर्ष पर अंग्रेज़ कम्पनी का आधिपत्य हुआ । इसको सुसंगठित तथा बलशाली बनाने के लिये कम्पनी के कर्मचारियों ने उचित-अनुचित का विचार छोड़, दमन-नीति का अवलम्बन करना आरम्भ कर दिया । भारतवासियों के मन के विरुद्ध कई नये कार्य किये गये, फल यह हुआ कि प्रजा में कम्पनी के विरुद्ध अविश्वास फैल गया । देशी सिपाहियों पर इसका प्रभाव बहुत अधिक पड़ा । इसलिये उत्तर भारत के सभी प्रसिद्ध-प्रसिद्ध स्थानों में विद्रोह फैल गया । बिहार में भी इसकी आग भड़क उठी । जब पटना के मुसलमानो ने सुना, कि विद्रोही सिपाहियों ने दिल्ली में अंग्रे़जी फौज को परास्त कर, दिल्ली के सिहासन पर फिर बूढ़े बहादुर शाह को बैठा दिया है, तब उन्होंने खुल्लम खुल्ला बग़ावत का झंडा उड़ा दिया। मौलानाओं और उल्माओं ने इस कार्य में बहुत सहारा दिया । पटना के कमिश्नर मिस्टर टेलर इससे बहुत घबरा गये और भीषण रूप से दमन करना आरम्भ कर दिया । पटना के शाह मुहम्मद हुसेन, अहमदुल्ला और वाजुलहक नामक तीन बड़े प्रसिद्ध मौलवियों को निमंत्रित कर वहाँ के कमिश्नर ने नज़रबन्द कर दिया । इससे पटना के सारे मुसलमान और भी अधिक क्रोद्ध तथा हो उन्मत्त हो उठे । फल यह हुआ, कि कई जगहों पर अंग्रेजी कर्मचारियों तथा मुसलमानों में मुठभेड़ हो गयी । इस पर कमिश्नर साहब ने हिन्दू-मुसलमान सबके अस्त्र-शस्त्र छीन लिये । इससे दोनों जातियाँ और भी क्रोधित हो उठी । फलतः २ जुलाई १८५७ ई० को सरकारी नौकरों तथा मुसलमानों के बीच भारी मुठभेड़ हो गयी । अनेकों को हत्या के साथ डाकर लायल भी मारे गये । इस हत्या से मि०हेलर के क्रोध की सीमा न रही ! लोग दनादन फॉसी पर लटकाये जाने जारी हो गया और देखते-देखते पटना एक श्मशान के रूप में परिणत हो गया ।

पटना में पीर अली खान नाम का एक साधारण मुसलमान था । पहले उसका मकान लखनऊ में था; लेकिन जब लखनऊ के नवाब का सर्वनाश हो गया, तब इसके परिवार के लोग पटना में आकर बस गये थे । ये लोग यहाँ पुस्तकें बेचकर अपना कार्य करते थे । सरकार की ओर से डाकलायल की हत्या करने का अभियोग इसी पर लगाया गया और अन्त में इसे फॉसी की सज़ा मिली । सरकार की ओर से बहुत प्रयत्न किया गया, कि पीर अली खान विद्रोहियों के सम्बन्ध में कुछ बताये;पर उसने कुछ भी पता नहीं दिया, बल्कि बड़ी दृढ़ता से कहा, -“दुनिया में बहुत से काम ऐसे है, जिनके लिये अपनी जान बचा लेना बहुत ज़रूरी है । पर बहुत से काम ऐसे भी होते हैं, जिनके लिये जान दे देना ही लाज़िम है। आप मुझे ही क्या, सैकड़ों और लोगों को भी फाँसी दे दें; पर इससे आप का मतलब पूरा नहीं होगा । एक-एक शहीद के बदले सौ-सौ दूसरे शहीद उठ खड़ होंगे।”

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पीर अली खान अब इस दुनिया से चले गये; लेकिन उन्होंने जो सबक सब हिन्दुस्तानियों को सिखाया है, वह स्वर्ण अक्षरों में लिखा रहेगा ।

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