स्वर योग साधना | स्वर योग क्या है | स्वर ज्ञान कैसे होता है | स्वर ज्ञान मंत्र | Swar Yog | Swar Yog Vigyan
खंजन स्वर ज्ञान मंत्र
ओम् तिमिर विष्ठाय स्वाहा।
उपरोक्त मन्त्र अमावास्या की रात्रि को निर्जन सरिता के तट पर विवस्त्र (नग्न) होकर दस हजार बार जाप करने से साधक खंजन की बोली समझने में समर्थ हो जाता है ।
ओम् तिमिर नाश्यै ह्रीं ।
इस मन्त्र को एकान्त स्थान में एकाग्रता से “तिमिर विनाशिनी” की पूजा तथा हवन करके दस हजार बार मन्त्र का जाप करने से खंजन स्वरसिद्धि प्राप्त होती है और साधक खंजन की बोली जानने योग्य हो जाता है ।
श्रृंगाल स्वर ज्ञान मंत्र | सियार स्वर ज्ञान मंत्र
ओम क्रीं क्रीं क्लीं क्लीं स्वाहा ।
उपरोक्त मन्त्र की सिद्धि करने के लिये साधक को चाहिये कि अमावस्या की रात्रि में वन में जाकर केवल एक आघात से श्रृंगाल का वध करके पृथ्वी पर चर्मासन बिछा कर उसे स्थापित कर मनोयोग पूर्वक उसकी पूजा करे ।
पुष्प, गंधादि अर्पित कर, मांस-मदिरा का नैवेद्य समर्पित करे । आधी रात को निर्वसन होकर उपरोक्त मन्त्र का एक लाख बार जाप करे । जाप सम्पूर्ण होते ही वह श्रृंगाल पुनः जीवित हो उठता है और साधक को ससम्मान सम्बोधन करके पूछता है कि, ऐ पुत्र ! तेरी अभिलाषा क्या है, प्रकट करो । उस समय साधक को निर्भय होकर उससे कहना चाहिये कि मेरे जीवन-पर्यन्त आप मेरे वश में रहकर सदैव मेरी रक्षा तथा कल्याण करें और उसे पुनः मांसयुक्त भोज्य पदार्थ अर्पित करे । इस भाँति साधन से श्रृंगाल साधक को मनवांछित वर प्रदान करता है और साधक को भविष्य में घटने वाली घटनाओं को छह मास पूर्व ही कान में बता देता है और साधक उसकी बोली सुगमतापूर्वक समझ लेता है ।
विशेष – साधक को जब भी कहीं श्रृंगाल का स्वर सुनाई पड़े तो उसे विनम्रतापूर्वक प्रणाम कर सम्मान प्रदान करना चाहिये ।
शूकर स्वर ज्ञान मंत्र
‘ॐ घुरु घुरु घुत् घुत् स्वाहा’ ।
उपरोक्त मन्त्र को कीचड़ तथा दलदल के मध्य अर्धरात्रि के समय ७० हजार बार जाप करने से सिद्धि प्राप्त होती है, जिससे साधक शूकर स्वर का ज्ञाता बनकर सकल सुख सम्पन्न हो जाता है ।
काक स्वर ज्ञान मंत्र
‘ॐ क्रीं का का’ ।
श्मशान से चिता की भस्म लाकर अर्धरात्रि को उस पर आसन लगा कर एकाग्रचित्त से छह हजार बार उपरोक्त मन्त्र का जाप करने से साधक काकस्वर का ज्ञाता, भविष्यदर्शी हो जाता है ।