तिरुपति बालाजी | Tirupati Balaji
भारत के सबसे चमत्कारिक और रहस्यमयी मंदिरों में से एक है भगवान तिरुपति बालाजी ।
भगवान तिरुपति के दरबार में गरीब और अमीर दोनों सच्ची श्रद्धा से अपना सिर झुकाते
हैं । ऐसा माना जाता हैं कि ये मंदिर सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के अमीर
मंदिरों में से एक है । हर साल लाखों लोग तिरुमला के पहाड़ियों में स्थित इस मंदिर
के भगवान वेंकटेश्वर का आशीर्वाद लेने के लिए एकत्रित होते हैं । मान्यता है कि
भगवान बालाजी अपनी पत्नी पद्मावती के साथ तिरुमला में निवास करते हैं, ऐसी मान्यता है
कि जो भक्त सच्चे मन से भगवान के सामने प्रार्थना करते हैं, बालाजी उनकी सभी इच्छाएं
पूरी करते है। मनोकामना पूर्ण होने पर भक्त अपनी श्रद्धा के अनुसार यहां आकर
तिरुपति मंदिर में अपने बाल दान करते हैं। इस अलौकिक और चमत्कारिक से ऐसे रहस्य
जुड़े हैं जिन्हें जानकर आप हैरान रह जाएंगे, आइए जानते हैं
मंदिर से जुड़े रहस्य :
कहा जाता हैं कि मंदिर भगवान वेंकटेश्वर की मूर्ति पर लगे
बाल असली है ये कभी उलझते नहीं है और हमेशा मुलायम रहते हैं । मान्यता है कि ऐसा
इसलिए है कि भगवान यहां खुद विराजते हैं ।
मंदिर में भगवान की मूर्ति पर अगर कान लगाया जाए तो उसके
अंदर से आवाज़ आती हैं यह आवाज़ समुद्र की लहरों के समान होती है।
एक बात और आश्चर्य करती है वो ये है कि मंदिर में बालाजी की
मूर्ति हमेशा पानी से भीगी रहती हैं । जैसे समुद्र के पास एक शांति सी महसूस होती
हैं वैसा ही अहसास मंदिर में होता है।
मंदिर में मुख्य द्वार पर एक बायी और छड़ी है, इस छड़ी के बारे
में कहा जाता हैं कि बाल्यावस्था में इस छड़ी से ही भगवान बालाजी की पिटाई की गई
थी, इस कारण उनकी ठुड्ढी पर चोट
लग गई थी, तब से आज तक
उनकी ठुड्ढी पर शुक्रवार को चंदन का लेप
लगाया जाता हैं ताकि उनका घाव भर जाए ।
भगवान बालाजी के मंदिर में एक दिया सदैव जलता है, इस दिए में ना
कभी तेल डाला जाता हैं और ना कभी घी । कोई नहीं जानता कि वर्षों से जल रहे इस दीपक
को कब और किसने जलाया था। जब आप भगवान बालाजी के गर्भ गृह में जाकर देखेंगे तो आप
पाएंगे की मूर्ति गर्भ गृह के मध्य स्थित है वहीं जब गर्भ गृह से बाहर आकर देखेंगे
तो लगेगा कि मूर्ति दायी ओर स्थित है । भगवान बालाजी की प्रतिमा पर खास तरह का
पचाई कपूर लगाया जाता हैं । वैज्ञानिक मत है कि इसे किसी भी पत्थर पर लगाया जाता
है तो वह कुछ समय के बाद ही चटक जाता है। लेकिन भगवान की प्रतिमा पर कोई असर नहीं
होता।
भगवान बालाजी के हृदय पर मां लक्ष्मी विराजमान रहती हैं।
माता की मौजूदगी का पता तब चलता है जब हर गुरुवार को बालाजी का पूरा श्रृंगार
उतारकर उन्हें स्नान करावाकर चंदन का लेप लगाया जाता है। जब चंदन लेप हटाया जाता
है तो हृदय पर लगे चंदन में देवी लक्ष्मी की छवि उभर आती है।
भगवान की प्रतिमा को प्रतिदिन नीचे धोती और ऊपर साड़ी से
सजाया जाता है। मान्यता है कि बालाजी में ही माता लक्ष्मी का रूप समाहित है। इस
कारण ऐसा किया जाता है।
भगवान बालाजी के मंदिर से 23 किमी दूर एक
गांव है, और यहां बाहरी व्यक्तियों
का प्रवेश वर्जित है। यहां पर लोग बहुत ही नियम और संयम के साथ रहते हैं। मान्यता
है कि बालाजी को चढ़ाने के लिए फल, फूल, दूध, दही और घी सब यहीं से आते हैं। इस गांव में
महिलाएं सिले हुए कपड़े धारण नहीं करती हैं।
वैसे तो भगवान बालाजी की प्रतिमा को एक विशेष प्रकार के
चिकने पत्थर से बनी है, मगर यह पूरी तरह से जीवंत लगती है। यहां मंदिर के वातावरण
को काफी ठंडा रखा जाता है। उसके बावजूद मान्यता है कि बालाजी को गर्मी लगती है कि
उनके शरीर पर पसीने की बूंदें देखी जाती हैं और उनकी पीठ भी नम रहती है।