एडमिरल सर जॉर्ज ट्रायल की आत्मा | Vice-Admiral Sir George Tryon
२२ जून १८९८ की शाम थी । एडमिरल सर जॉर्ज ट्रायल अपने युद्धपोत के डेक पर खड़े होकर दूर क्षितिज तक फैले अथाह समुद्र में डूबते हुए सूर्य को देख रहे थे । मौसम साफ होने के कारण समुद्र बिलकुल साफ तथा शांत था । एडमिरल का विक्टोरिया नामक युद्धपोत छह अन्य युद्धपोतों का नेतृत्व करता हुआ आगे बढ़ रहा था ।
एडमिरल के साथ उसका एक सहायक अधिकारी मारथम भी था, जो छह अन्य युद्धपोतों को संचालन का संकेत दे रहा था । रात धीरे-धीरे घिरने लगी थी । समुद्र शांत वातावरण में भयावह चुप्पी लिए था । एडमिरल अब तक इस तरह की समुद्री यात्राओं के खूब अभ्यस्त हो चुके थे ।
एडमिरल सर जॉर्ज ट्रायल के.सी.बी. ब्रिटेन के भूमध्य सागरवर्ती स्क्वाड्रन के कमांडर इन चीफ थे । अपने पूरे स्क्वाइन के नेतृत्व की जिम्मेदारी का दायित्व उन्हीं के कंधों पर था, इस वजह से ड्यूटी के दौरान रात के समय विशेष रूप से सतर्कता बरतते थे ।
२२ जून,१८९३ की रात को भी वे उसी सतर्कता से ड्यूटी दे रहे थे कि तभी उन्हें युद्धपोतों के लिए कुछ खतरा-सा महसूस हुआ । उन्होंने तुरन्त सुरक्षा की दृष्टि से आगे बढ़ रहे जहाजों को एक-दूसरे की ओर मुंह मोड़ने तथा प्रत्येक दूसरे जहाज को अपने पीछे वाले जहाज की ओर मुंह मोड़ने का घातक संकेत दिया । अंधेरे के कारण एडमिरल शायद यह नहीं देख पाए कि युद्धपोतों को इस तरह मुंह मोड़ने के लिए स्थान बहुत कम था ।
यदि एडमिरल के संकेत पर जहाज घूमने का प्रयास करते, तो विक्टोरिया तथा कैंपरडाउन नामक जहाजों को ही साढ़े छह सौ मीटर समुद्री क्षेत्र चाहिए था । इसके विपरीत यहां तो सिर्फ साढ़े तीन सौ मीटर जगह ही थी । सारे जहाज इस स्थिति में एक-दूसरे से केवल तीन-तीन सौ मीटर की दूरी पर थे, अतएव उनमें टक्कर हो जाना स्वाभाविक था ।
एडमिरल के सहायक मारथम ने अपने अफसर का यह आदेश सुना, तो वह एकाएक घबरा गया । उसने तुरन्त अपने फ्लैग लेफ्टिनेंट को बताया कि सर जॉर्ज ट्रायल का यह आदेश बिलकुल अव्यावहारिक है । इस आदेश पर किसी भी सूरत पर अमल नहीं किया जा सकता था । मारथम को यह उम्मीद थी कि हो सकता है, ट्रायल ने यह आदेश जल्दबाजी में दे दिया हो और अब कठिनाई जानकर वह अपने आदेश में तब्दीली कर दे ।
मारथम थोड़ी देर तक इन्तजार करता रहा । सर जॉर्ज ट्रायल ने जब देखा कि उनके आदेश का पालन नहीं हो रहा है, तो उन्होंने फौरन संदेश दिया, “जल्दी मेरे आदेश का पालन करो, देरी करना खतरनाक साबित हो सकता है।“
मारथम एडमिरल के इस संदेश से और भी दुविधा में पड़ गया । वह यदि आदेश का पालन करता है, तो सारे युद्धपोतों के समुद्र में डूब जाने का खतरा है । यदि नहीं करता है, तो वह सेना के नियम का उल्लंघन करना होता | मारथम ने अपनी समस्या कैंपरडाउन पोत के कैप्टन जॉन स्टोन को बताई । स्टोन ने परार्मश दिया कि आदेश तो आदेश है, उसका हर हालत में पालन किया जाना चाहिए । मारथम ने अंततः उसी के आदेश का पालन किया तथा अपने पीछे के दो जहाजों को एडमिरल के आदेश के अनुसार मुड़ने का आदेश दिया । मारथम का संकेत मिलते ही दो जहाज तेजी से एक-दूसरे की तरफ बढ़ने लगे ।
दोनों जहाजों को इस प्रकार एक-दूसरे की तरफ बढ़ते देख विक्टोरिया के कप्तान मौरिस बोरके ने सर जॉर्ज ट्रायल को आगाह किया, “सर हमारा जहाज उस जहाज से टकराकर टूट जाएगा । “ कैप्टन की इस चेतावनी का एडमिरल पर कोई असर नहीं हुआ । तभी कैप्टन मौरिस पुनः चीखा, “सर, क्या मैं जहाज को रुकने का संकेत दूं ? “ इस पर एडमिरल ने “यस” कहा, तो कैप्टन ने जहाजों को मुख पलटने का आदेश दे दिया ।
बिलकुल ऐसा ही आदेश विपत्ति को सामने देखकर मारथम ने जारी कर दिया था, किन्तु तब तक एक-दूसरे की तरफ तेजी से बढ़ते जहाज काफी करीब आ चुके थे । ऐसी दशा में उन्हें रोक पाना बिलकुल असंभव था । इस सबका परिणाम भी तुरन्त ही सामने आ गया । कैंपरडाउन पोत ने तेजी से विक्टोरिया से टक्कर मारी तथा उसकी मोटी-मोटी प्लेटें एक ही बार में टूटकर बिखर गई । इस अचानक घातक टक्कर से विक्टोरिया थोड़ी दूर तक पीछे की तरफ गया तथा तभी समुद्र के अथाह गर्भ में समा गया ।
दूसरे युद्धपोतों के सैनिकों ने विक्टोरिया पर सवार एडमिरल सर जॉर्ज ट्रायल व नौ सेना के जवानों को बचाने के लिए जीवन रक्षक नौकाएं भी समुद्र में उतारीं, परन्तु कोई फायदा नहीं हुआ । एडमिरल ट्रायल के साथ ही विक्टोरिया पर सवार ३३६ सैनिक तथा २२ अफसर भी मारे गए ।
यहां तक तो बात युद्ध तथा नौ सैनिक जीवन के संदर्भ में थी, किन्तु उधर एडमिरल के घर पर जो देखा गया, वह बिलकुल अविश्वसनीय तथा चौंका देने वाला था । यह घटना भी ठीक एडमिरल सर जॉर्ज ट्रायल की मृत्यु वाले दिन अर्थात् २२ जून, १८९३ की है ।
एडमिरल ट्रायल की पत्नी इस दिन शाम के समय लंदन के ईटन स्क्वेडर स्थित अपने निवास पर कुछ परिचितों तथा दोस्तों के साथ बैठी थी । उसी समय श्रीमती ट्रायल के साथ-साथ बाकी सब लोग भी बुरी तरह चौंक गए, जब उन्होंने देखा कि मायूसी की सी अवस्था में एडमिरल सर जॉर्ज ट्रायल ड्राइंग रूम में दाखिल हुए तथा बिना किसी से एक शब्द बोले, दूसरे दरवाजे से बाहर चले गए । वहां उपस्थित सभी लोग एडमिरल के अच्छे परिचितों में थे तथा उन्हें पूरा यकीन था कि ड्राइंग रूम से गुजरने वाला वह दाढ़ीधारी व्यक्ति एडमिरल ही था ।
श्रीमती ट्रायल की हालत और भी विचित्र थी । उनके पास ऐसी कोई सूचना नहीं थी, जिससे पता चलता हो कि एडमिरल लंदन आ रहे हैं । वे लंदन में आखिर आ भी कैसे सकते थे, क्योंकि उन्हें तो उस वक्त त्रिपोली के तट के पास अपने युद्धपोत विक्टोरिया पर होना चाहिए था ।
आखिर लंदन में एडमिरल कैसे दिखाई दिए ? इसके पीछे क्या रहस्य था ? क्या यह कोई वास्तविकता थी या महज एडमिरल की पत्नी व उसके परिचितों को दृष्टि भ्रम ? इन प्रश्नों का आज तक किसी के पास कोई उत्तर नहीं है । बाद में सैनिक अधिकारियों को इस बात पर भी बहुत आश्चर्य हुआ कि आखिर एडमिरल ने जहाजों को इस तरह एक-दूसरे की तरफ मुड़ने का घातक आदेश क्यों दिया ? इस दुर्घटना मे बचने वाले एक प्रत्यक्षदर्शी युवा कमांडर का कहना था कि दुर्घटना के समय एडमिरल ट्रायल मानसिक रूप से कुछ परेशान से थे । ऐसी हालत में अनुमान लगाया जा सकता है कि दुर्घटना के समय मानसिक परेशानी की हालत में एडमिरल की आत्मा लंदन स्थित अपने घर पहुंच गई हो तथा उसी के साकार रूप को श्रीमती ट्रायल व अन्य लोगों ने देखा हो ।