कुंडलिनी जागरण क्या है
What is Kundli Jagran
आप सब ने कभी-न-कभी कुंडलिनी के
बारे मे किताबों से, अपने बडे-बुजुर्गो
से या इंटरनेट पर सुना होगा | ये भी सुना होगा की बड़े-बड़े तपस्वियों
की कुंडलिनी जागृत होती है | सभी को ये उत्सुकता रहती है की कुंडलिनी
क्या है ? और जिनका प्रयत्न कुंडलिनी जागरण मे जारी है, वो ये जानना चाहते है की आखिर ये होता कैसे है ? आइये, इसके बारे मे विस्तार से बात करे :
कुंडलिनी ध्यान की प्रारंभिक अवस्था
है | कुंडलिनी जाने बिना ध्यान
नही किया जा सकता है |
इंसान की पीठ मे तीन नाड़िया होती
है, इड़ा, पिंगला और बीच मे होती है सुषुम्ना | इड़ा नाड़ी हमारी रीढ़ की हड्डी के बाई तरफ होता है
और पिंगला दाहिने तरफ होती है | ये दोनों नाड़िया का संपर्क हमारी
नाक से होता है | इन दोनों नाड़िया मे वायु (हवा) चलती है और सुषुम्ना
मे वीर्य (Semen) भरा होता है | जब किसी
व्यक्ति को लकवा (Paralysis) होता है, तब
डॉक्टर उनकी सुषुम्ना मे सुई से इस द्रव्य को निकालता है और इसके परीक्षण से पता चल
जाता है की बीमारी क्या है ? और इसका इलाज कैसे करना है ?
किसी भी इंसान का सिर (खोपड़ी)
का पिछले भाग जहा समाप्त होता है वहा एक गांठ होती है | इसके साथ ही साथ रीढ़ की हड्डी जहा समाप्त होती
है | इन दोनों के बीच सुषुम्ना मे ये द्रव्य भरा होता है | इंसान का सिर (खोपड़ी) पिछले भाग मे लगा ये गांठ इस द्रव्य को ऊपर की तरफ नही
चढने देता है |
एक इंसान के शरीर मे जहा रीढ़ की
हड्डी समाप्त होती है, उसके नीचे
एक मांस है | उस मांस के अंदर का जो मांस है, उसकी स्थिति ये है की वह ३-१/२ (साढ़े तीन) घेरा (Round) लिए हुए है और आधा घेरा मे उसका अंतिम छोर नीचे की तरफ है | इसलिए इसे “सर्पनी” भी कहा जाता है और इसके इस घेरे को कुंडलीनी कहा जाता
है | यही से सुषुम्ना मे भरा द्रव्य शुरू होता है, जो इंसान का सिर (खोपड़ी) के पिछले भाग मे लगे गांठ तक आता है |
इस मांस का भाग जो अंतिम छोर मे
नीचे की तरफ झुका होता है, इसे उपर
उठाना आवश्यक होता है, और इस प्रक्रिया को ही कुंडलिनी जागरण
कहा जाता है |
इसे उपर उठाने के कुछ तरीके है
| पर कुछ स्थिति मे यह भी देखा गया है की कुछ
लोग ऐसे भी है जिनकी कुंडलिनी अचानक जागृत हो उठी है बिना किसी प्रयत्न के |
पहला तरीका है योग | योग के द्वारा इसे ऊपर उठाया जा सकता है | पर इसमे सबसे ज्यादा सावधानी बरतने की आवशकता होती है | जब तक योग गुरू व कोई अनुभवी व्यक्ति सामने न हो इसका प्रयत्न बिलकुल भी नही
करना चाहिए |
दूसरा तरीका है शक्तिपात | जिसके पास ब्रम्ह ऊर्जा है या जिसकी कुंडलिनी
पूरी तरह से जागृत हो, वो अपनी ऊर्जा देकर कुंडलिनी जागृत कर
सकते है | शक्तिपात के बारे मे यह कहा जाता है की यदि शक्तिपात
से कुंडलिनी जागृत की जाती है तो इस मांस का भाग जो अंतिम छोर मे नीचे की तरफ झुका
होता है वह तुरंत ऊपर की तरफ हो जाता है, मगर आसपास की जगह खाली
रहने से ये द्रव्य छोडने लगता है जो शरीर को काफी तकलीफ दे सकता है, जब तक इस खाली जगह को बाकी के मांस भर न जाए |
तीसरा तरीका है ध्यान | ध्यान मे, यह स्थिति होती
है की एक बार ध्यान करने पर इंसानी शरीर के एक बाल के बराबर उपर उठता है, जिसे २४ घंटो मे शरीर इस रिक्त स्थान को भर देता है | ध्यान से कुंडलिनी जागरण करने पर ये वापस नीचे नही आती है | लंबे समय तक ध्यान करने पर ये सीधे खड़े होकर सुषुम्ना के नीचे आ जाता है | सुषुम्ना मे भरा हुआ द्रव्य और इस सीधे खड़े मांस मे भरा द्रव्य के कारण सिर
(खोपड़ी) के पिछले भाग मे लगे गांठ खुलना शुरू हो जाते है और यह द्रव्य सिर मे भरने
लग जाता है | सिर मे भरने के बाद ये दोनों भौ के मध्य (जहा तिलक
लगाया जाता है) मे पहुच जाती है और यहा बने सुराख को खोल देता है जिसे ब्रम्हरंध्र
कहते है | अंग्रेज़ी मे इसे Burr Hole कहते है |
जब कभी किसी को दिमाग की कोई बीमारी
होती है तो तब डॉक्टर उनकी Burr Hole मे सुई से द्रव्य को निकालता है और इसके परीक्षण
से पता चल जाता है की बीमारी क्या है ? और इसका इलाज कैसे करना
है ?
ब्रम्हरंध्र से ये द्रव्य बाए
गाल से होते हुए गले तक पहुच जाता है और वहा से सीधे नाभी मे टपकता है | जिससे नाभी से होता हुआ, वापस उसी स्थान पर मूलाधार मे पहुचता है | इस प्रकार
ये इस द्रव्य का एक चक्र बन जाता है जो निरंतर चलता रहता है | गले से नाभी मे इस द्रव्य के गिरने पर ऊर्जा उत्पन्न होती है ठीक उसी प्रकार
जैसे पानी के गिरने से बिजली पैदा होती है | इसे कॉस्मिक एनर्जी
(ब्रम्ह ऊर्जा) कहा जाता है |
यह मान्यता है की इस ब्रम्ह ऊर्जा
के आधार पर ही आत्मा शरीर से बाहर निकालकर यात्रा कर सकती है |