दुबड़ी सप्तमी | दुबड़ी साते की कहानी | दुबड़ी साते व्रत कथा और पूजन विधि | Dubdi Sate Ki Katha | Dubdi Sate Ki Kahani

E0 A4 A6 E0 A5 81 E0 A4 AC E0 A4 A1 E0 A4 BC E0 A5 80 20 E0 A4 B8 E0 A4 BE E0 A4 A4 E0 A5 87 20 E0 A4 95 E0 A5 80 20 E0 A4 95 E0 A4 B9 E0 A4 BE E0 A4 A8 E0 A5 80 20

दुबड़ी सप्तमी | दुबड़ी साते की कहानी | दुबड़ी साते व्रत कथा और पूजन विधि | Dubdi Sate Ki Katha | Dubdi Sate Ki Kahani

भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी दुबड़ी सातें के नाम में मनाई जाती है ।

दुबड़ी साते व्रत कथा और पूजन विधि


विधान – एक पटरे पर दुबड़ी (कुछ बच्चों की मूर्ति, सर्पों की मूर्ति, एक मटका, और एक औरत) मिट्टी से बना लें । उनको जल, दूध, चावलरोली, आटा, घी, चीनी मिलाकर लोई बनाकर उनसे पूजें और दक्षिणा चढ़ाएँ ।

भीगा हुआ बाजरा भी चढ़ाएँ । मोंठ और बाजरे का बायना निकालकर सास को पाँव छूकर दें । फिर कहानी सुनकर ठण्डा भोजन करना चाहिए ।

यदि किसी पुत्री का विवाह उसी वर्ष हो तो उसका भी उजमन करना चाहिए । उजमन में मोंठ और बाजरें की १३ कुड़ी करके उसके ऊपर एक साड़ी, ब्लाउज रखकर तथा एक रुपया रखकर सासू जी के पैर छूकर दे दें ।

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दुबड़ी साते की कहानी | Dubdi Sate Ki Katha | Dubdi Sate Ki Kahani


एक साहूकार के सात बेटे थे । जब वह अपने बेटे की शादी करता तो बेटा मर जाता । इस प्रकार उसके सात में से छ: बेटे की मृत्यु को प्राप्त हो चुके थे । एक दिन छोटे बेटे के विवाह की बात चली । शादी पक्की हो गई । इस लड़के की बुआ शादी में शामिल होने के लिए आ रही थी । रास्तें में उसे एक बुढ़िया मिली । बुढ़िया ने उससे पूछा – तुम कहाँ जा रही हो ? तो बुआ ने बताया कि मैं अपने भतीजे के विवाह में जा रही हूँ ? परन्तु मेरे छः भतीजे विवाह होते ही मर गए थे । यह सातवाँ है ।

यह सुनकर बुढ़िया बोली – वह तो घर से निकलते ही मर जाएगा । अगर बच गया तो रास्ते में एक पेड़ के नीचे दबकर मर जाएगा । अगर वहाँ से बच गया तो ससुराल में दरवाजा गिरने से दबकर मर जायेगा । अगर वहाँ से बच गया तो सातवें भाँवर पर सर्प के काटने से मर जाएगा । यह सुनकर बुआ बोली – माँ ! बचने का कोई उपाय है ? तब बुढ़िया बोली – है तो सही, परन्तु कठिन है । सुन, तुम लड़के को पीछे के रास्ते से निकालना । पेड़ के नीचे लड़के को मत बैठने देना । ससुराल में भी पीछे के दरवाजे से लेकर जाना । भाँवरों के समय कच्चे करवे में कच्चा दूध और गरम लकड़ी लेकर बैठ जाना ।

जब भाँवरें पड़ेंगी तो उसे डसने के लिए साँप आएगा तो साँप के आगे करवा रख देना और जब सर्प दूध पीने लगे तो सर्प के गले को गर्म लकड़ी से दाग देना । बाद में साँपिन आएगी और साँप को माँगेंगी । तब तुम उससे अपने छः भतीजों को माँग लेना ।

वह उन्हें जीवित कर देगी । इस बात को किसी को बताना नहीं । नहीं तो तुम और वह सुनने वाला दोनों मर जाओगे । लड़का भी मर जाएगा ।

बुआ घर आ गई । जब बारात जाने लगी तो बुआ अपने को पीछे के दरवाजे से निकालकर ले गई, तो घर का मुख्य दरवाजा गिर गया । बारात के साथ बुआ भी जाने की जिद करने लगी । सबने मना किया परन्तु वह नहीं मानी । रास्ते में बारात एक पेड़ के नीचे रुकने लगी तो बुआ ने अपने भतीजे को धूप मे बैठाया | दूल्हे के बैठते ही पेड़ गिर गया । सब बाराती बुआ की प्रशंसा करने लगे । बारात वहाँ लड़की के यहाँ पहुँची तो वहाँ भी बारात पीछे के दरवाजे से ले जाने के लिए बुआ ने कहा । बुआ की बात मान ली गई । पीछे के दरवाजे से जैसे ही वह अन्दर घुसा तो घर का मुख्य दरवाजा गिर गया ।

जब भाँवरें पड़ने लगीं तो बुआ ने एक कच्चे करवे में कच्चा दूध मँगवाया और भट्टी में से एक गरम लकड़ी मँगाकर अपने पास रख ली । जब सातवीं भाँवर पड़ने लगीं तो सर्प आया । बुआ ने दूध से भरा करवा सर्प के आगे कर दिया, जब सर्प दूध पीने लगा तो बुआ ने सर्प के गले को जलती लकड़ी से दाग दिया । बाद में साँपिन आकर अपने सर्प को माँगने लगी, तो बुआ ने कहा – पहले मेरे छः भतीजों को लाओ तब तुम्हें साँप मिलेगा ।

साँपिन ने उसके छहों भतीजे जीवित कर दिये और साँपिन साँप को लेकर चली गई । यह देखकर सब बाराती बुआ की प्रशंसा करने लगे । बारात के घर वापिस आने पर बुआ ने सप्तमी के दिन दुबड़ी की पूजा की । इसी कारण इसको दुबड़ी सातें कहते हैं ।

दुबड़ी मैया ! जैसे तूने बुआ के सातों भतीजे दिये वैसे ही सबकी रक्षा करना ।

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