मानसिंह का इतिहास | Man Singh

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मानसिंह
का इतिहास
| Man Singh

मानसिंह जयपुर के महाराजा भारमल का पोता था ।
अपने पिता
 और दादा की तरह उसने भी अपनी पुरानी राजपूती परम्परा
को भुलाकर इस्लाम
का समर्थन किया
और
विदेशी
मुस्लिम
शासकों और अ
मीरों
को इस बात की छुट दी कि
वो जो चाहें
 
कर ले | इसलिए
राणा प्रताप उसके प्रति
घृणा
करता था
, एक
बार वह अकबर की ओर से बातचीत करने के लिए राणा प्रताप के निवास स्थान पर गया
, तब
देश-प्रेमी राणा ने मुसलमानों के
मित्र मानसिंह के साथ भोजन करने से इन्कार कर दिया।
मानसिह के चले जाने के बाद उ
न्होने उस जगह से, जहाँ दोनों
की मुलाकात हुई थी
, मिट्टी को खुदवा दिया, उसे
पवित्र किया और सभी बर्तनों को पवित्र कराया
| मानसिंह की बहन का विवाह जहांगीर से हुआ था, जबकि
उसकी बुआ का विवाह अकबर से हुआ था ।

मानसिंह
का जन्म अम्बर में हुआ था। वह अकबर की सेवा में उस समय आया जब उसके दादा भारमल ने
अपनी पु
त्री
अकबर
को सौप दी।

उसे राणा प्रताप के विरुद्ध अभियान में भेजा
गया और अगले वर्ष उस महान राणा से उसका सामना
हल्दी घाटी में
हुआ। जब मानसिंह का चाचा भगवानदास पंजाब का गवर्नर नियुक्त किया गया
, तब
मानसिंह को सिंध नदी के साथ लगने वाले जिलों का नियन्त्रण सौंपा गया। बाद में उसे
शाँति स्थापना के लिए काबुल भेजा गया।

अबुल फजल का कथन है कि शाही दरवार में धोखेबाजी, व्यभिचार
और धर्मान्धता को देख कर उसका चाचा भगवानदास पागल हो गया था और बाद में उसने आत्महत्या
कर ली थी। उसकी मृत्यु के बाद उसे राजा का पद मिला।

उसके अधीनस्थ मुसलमानों ने उसके विरुद्ध
शिकायत की कि वह उनकी धर्मान्धता की तुष्टि नहीं होने देता
, जिस
पर उसे काबुल से वाप
बुला लिया
गया और बिहार का गवर्नर बनाकर वहाँ के पूरनमल और राजा संग्राम जैसे देशभक्त और वीर
हिन्दू शासकों को दबाने के लिए भेजा गया। अकबर के शासन काल के ३५वें वर्ष में
मानसिंह को उड़ीसा पर आक्रमण करने के लिए भेजा गया। वह जगन्नाथ पुरी पर अधिकार करने
में सफल रहा और उसे अकबर के राज्य में मिला लिया।

आगरे का प्रसिद्ध ताज-महल इसी मानसिंह की
सम्पत्ति था। उसके पोते जयसिंह से यह महल अकबर के पोते शाहजहाँ ने हड़प लिया और
बेगम को दफ़न किया
| मानसिंह
अकबर के बाद भी जीवित रहा
, जहाँगीर के शासनकाल के नौवें वर्ष में उसकी
मूत्यु हुई।

      

जहाँगीर ने अपनी पत्नी मानबाई (जो
मानसिह की बहन थी)
का कत्ल
कर दिया था। मानसिंह ने एक
ड्यन्त्र रचकर यह प्रयत्न किया कि जहाँगीर को गद्दी पर
बैठने से रोका जाये उसने जहांगीर के बेटे को अकबर की मृत्यु के पश्चात् बादशाह
घोषित कर दिया
|

मानसिंह ने अपना सारा जीवन अकबर के आदेश पर
युद्ध करने में
व्यतीत
किया। इस प्रकार अप्रत्यक्ष रूप से वह इस्लाम के प्रसार में सहायता देने में लगा
रहा । फिर भी अकबर उससे
घृणा
करता था। एक बार नशे की हालत में अकबर ने मानसिंह का गला घोंट देने का प्रयत्न
किया था। कुछ अन्य उपस्थित दरबारियों ने उसे बचा लिया ।

१६०५ में अकबर ने जहर की गोलियाँ खिलाकर
मानसिंह को मार डालने का प्रयत्न किया। परन्तु दुर्भाग्य से अकबर का यह कुचक्र
उलटे उस पर ही चल गया । परिणाम यह हुआ कि अकबर की मृत्यु हो गई जबकि मानसिंह जीवित
रहा। मुस्लिम दरबार में वासना और धोखेबाज़ी के वातावरण से दुःखी होकर मानसिंह के
लड़के जगतसिंह और उसके साथियों ने अत्यधिक शराब पीकर आत्महत्या कर ली।
           

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