राइज रौर रिवोल्ट (आर आर आर)
RRR
आपने एस॰एस॰ राजमौली की आने वाली फिल्म आर आर आर मूवी RRRका पोस्टर तो देखा ही होगा | राइज रौर रिवोल्ट को ही आर आर आर कहा गया है |
इनमे भीम की तरह मजबूत दिखने वाले दो व्यक्ति को दिखाया गया है और उसका नाम बताया गया है कोमाराम भीम और अल्लुरी सीताराम राजू | निर्देशक ने यह कहा है की आर आर आर फिल्म एक काल्पनिक कहानी है, जो दो महान स्वतन्त्रता सेनानियो कोमाराम भीम और अल्लुरी सीताराम राजू पर आधारित है |
ये दोनों आदिवासी समुदाए के होने के साथ ही साथ तेलंगाना के थे, जो आन्ध्रप्रदेश का ही एक भाग है | इन्होने आदिवासियो के हक के लिए हैदराबाद के निजाम और अंग्रेज़ो के डटकर मुक़ाबला किया और लड़ते हुए शहीद हो गए |
तो आइये आज हम बात करते है इनके कोमाराम भीम के जीवन के बारे मे :
आदिवासियो के लिए आजादी के संघर्ष मे कोमाराम भीम का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है |
कोमाराम भीम का जन्म २२ अक्टूबर १९०१ मे जिला अधिलाबाद(तेलंगाना) मे हुआ | इन्होने कोई भी पढ़ाई नही की थी और अपने समाज के कठिनाइयों को देखते हुए बड़े हुए थे |
इनके पिता ने जब अंग्रेज़ो के कर और शोषण के खिलाफ आवाज उठाई तो उनकी हत्या कर दी गई थी |
कर और शोषण के खिलाफ फिर कोमाराम ने विरोध शुरू किया और जल्द ही विरोध संघर्ष मे बदल गया | अपने आदिवासीय समुदाए से निकलकर कोमाराम बाहर शहर गए, जहा उन्होने अग्रेज़ी, हिन्दी और उर्दू सीखी |
फिर वह चाय बागान काम करने असम गए और वहा भी उन्होने काम कर रहे मजदूरो के हक के लिए मालिको के खिलाफ विरोध किया | इस विरोध के लिए उनको गिरफ्तार कर लिया गया और कुछ की दिनो बाद वे जेल से निकलने मे सफल रहे | वहा से वह वापस अपने गाव आ गए |
इसके बाद उन्होने आजादी से लिए संगठन बनाना शुरू कर दिया | वे सीताराम राजू से बहुत प्रभावित थे | उन्होने जब विद्रोह शुरू किया तब हैदराबाद के निजाम ने समझौते का प्रस्ताव पेश किया लेकिन उन्होने यह समझौते को नकार दिया |
उन्होने १९४० मे “जल, जंगल, जमीन” का नारा दिया था |
उन्होने जंगल के सभी संसाधनो का हक आदिवासियो को देने के लिए जंग छेड़ा था और निजाम को अपनी जगह छोड़ देने को कहा मगर निजाम ने उनकी बात नही मानी और उन्होने भीम को मारने की योजना बना ली |
निजाम ने अपने ३०० सैनिको को भीम की खोज करने और मारने के उद्देश्य से जंगल मे भेज दिया मगर ये सैनिक भीम को पकड़ने मे नाकामयाब रही |
लेकिन एक दिन अँग्रेज सरकार ने भीम के एक साथी को रिश्वत देकर अपना मुखबीर बना दिया और सन १९४० मे सैनिको से उनकी आमने-सामने लड़ाई हो गई |
कम साधन और बंदुको के सामने तीर-धनुष नही टिक पाए और कोमराम भीम अपने १५ साथियो के साथ वही शहीद हो गए |
आदिवासियों मे यह बात फैली थी की भीम बहुत से मंत्र जानते है जिससे सैनिको मे यह डर था की कही वे मंत्रो की ताकत से वापस जिंदा न हो जाए इसलिए उन पर इतनी गोलिया दागी गई की उनका चहरा पहचाना नही जा सका |
उनकी और उनके १५ साथियो की लाश को परिवार को न सौपकर गुप्त रूप से जला दिया गया |