केसरी (फ़िल्म) | Kesari

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Kesari

केसरी

केसरी की कहानी, केसरी फिल्म का इतिहास, केसरी का इतिहास, केसरी ट्रेलर

केसरी फिल्म बनी है सारागढ़ी के संग्राम के आधार पर जहा रेजिमेंट के २१ सिखो ने १० हजार अफगानियो से जंग लड़कर उन्हें हराया था | अक्षय कुमार की फिल्म केसरी भी इसी लड़ाई पर आधारित है | इस २१ सिख के रेजिमेंट को सम्हालने की जिम्मेदारी थी, हवलदार इशर सिंह की जिसकी भूमिका निभाए है अक्षय कुमार ने |

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तो आइये जानते है हम केसरी फिल्म का इतिहास के बारे में |

सामन पहाडियों के बीच कोहट जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है उस कस्बे में ४० मिल दूर एक चोटी पर छोटी सी चौकी थी ,यह चौकी २ किलो के बीच थी एक तरफ लाखार्ड का किला (Lockhart Fort) और दुसरे तरफ गुलिस्तान का किला (Gulistan Fort) |

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ये कहानी है उस चौकी को सम्हालने वाले उस २१ सीखो की जो १०००० अफगानियो से लडे | ख़ैबर पख़्तूनख़्वा के इलाके के पास भारत और अफगानिस्तान की शरहद थी |

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१९वी शताब्दी, में ब्रिटेन और रूस के बीच मध्य एशिया को हथियाने की होड़ लगी हुई थी | इसी होड़ के चलते दोनों साम्राज्य अफगानिस्तान पर कब्ज़ा करना चाहते थे | १८८१ से १८८५ के लगभग रूस तुर्किस्तान के रास्ते अफगानिस्तान की तरफ बढ़ रहा था |

१८८५ में जब रूस अफगानिस्तान के नजदीक पहुच गया | तब ब्रिटेन ने रूस के साथ एक समझौता किया, इस समझौते के अनुसार ब्रिटिश ने इंडिया की सीमा तय कर दी | अफगानिस्तान के आमीर अब्दुल रहमान खान को साथ लेकर अफगानिस्तान और भारत के बीच सरहद बनाने के लिए डूरेन (Durand)कमीशन का गठन किया गया | आज भी पकिस्तान और अफगानिस्तान की सीमा यही पर है, और इस सीमा को डूरेन लाइन (Durand Line) कहा जाता है | पर साल १८९१ में अपनी सीमा से ज्यादा हिस्से को कब्जे में लेने के लिए ब्रिटेन ने खुद आगे बढ़कर किले और चौकिया बनानी शुरू कर दी और इसके अंतर्गत सामन की पहाडियो पर जनरल विलियम लाखार्ड ने दो बार चढाई की और दो नई किले बने लाखार्ड और गुलिस्तान, और आस पास कई छोटी चौकिया बनाई गयी | इनमे से सबसे महत्त्वपूर्ण थी सारागढ़ी की चौकी |

टेलीग्राफ का आविष्कार तो हो गया था पर इसके इस्तमाल में एक परेशानी यह थी की लाखार्ड और गुलिस्तान के बीच तो टेलीग्राफ के तार बीछे थे, आस पास के इलाके में पठान रहते थे और सरहद बनने से पठानी कबिले बट रहे थे, इससे नाराज होकर कबिले के लोग इन तारो को काट देते थे |

इससे दोनों किलो के बीच बात चीत का साधन बंद हो जाता था | और दुश्मन के लिए हमला करना आसन हो जाता था | इसलिए इन दोनों किलो के बीच सारागढ़ी की चौकी बनाई गयी | चौकी उचाई पर थी और दोनों किले यहाँ से नजर आते थे | सारागढ़ी में तैनात सिपाहियों का एक विशेष काम था, दोनों किलो के बीच बातचीत में कड़ी बनने का | सारागढ़ी में सिपाही आईने से धुप चमकाकर सिग्नल देते थे और कोड में एक किले की बात दुसरे किले तक पहुचाते थे |

१८८७ में भारत की उत्तरी पूर्वी सीमा को सुरक्षित करने के लिए खास तौर पर रेजिमेंट तैयार की गयी जो थी ३६वी सिख रेजिमेंट | इसे तैयार करने का कार्य कर्नल जीम कुक और कैप्टन हैनरी होम्स ने ९१२ जवानो की यह रेजिमेंट जो ८ टुकडियो में बांटने के रूप मे किया और इन्हे अलग अलग चौकी में बाट दिया गया जैसे लाकहांर्ट किले में १६८, गुलिस्तान में १७५ और सारागढ़ी में २१ |

अगस्त १८९७ में डूरेन कमीशन शरहद बनाने के काम में लगा था | इससे नाराज आफरीदी पठानों ने विद्रोह कर दिया और साथ में पडोस के कबिले को भी मिला लिया |

१२ सितम्बर १८९७ सुबह ९ बजे किलो के बीच की कड़ी को तोड़ने के लिए पठानो ने सरागढ़ी पर हमला कर दिया ताकि लाखार्ड का किला और गुलिस्तान का किला का संपर्क टूट जाए और वो इसे आसनी से जीत सके | दस से बारह हजार अफगानी पठानों की सेना सारागढ़ी के सामने खडी थी और सारागढ़ी में थे ३६वी सिख रेजिमेंट के सिर्फ २१ जवान |

लडाई शुरू हुई और २ अफगान छिपकर किले की दिवार तक पहुच गए और आग लगा दी | स्थिति को देखते हुए लाखार्ड किले के लेफ्टिनेंट कर्नल हार्टन भी अपने १६८ मे से कुछ सिपाहियों को लेकर मदद करनी चाही पर अफगान सेना इतनी थी की अपना किला छोडकर आगे बढ़ ही न सके | ३ बजे तक लड़ते लड़ते छ: घंटे हो चुके थे, और सिख अभी भी लड़ रहे थे | बाहर अफगानी शत्रुओ के लाशों के ढेर लग चुके थे | दुश्मन ने चौकी की दिवार को धमाका कर तोड़ दिया, और उस लाशों के ढेर पर चढकर बाकी के अफगान आगे बढे, तब तक अंदर बहुत से जवानो की जान जा चुकी थी | बचे हुए सीखो में से एक थे चौकी के मुखिया इसर सिंह | दुश्मन को इतना करीब देखकर इसर सिंह बन्दुक फेककर हांथो से लडे और कई अफगानों को तो हाथो से ही मार गिराया उनके साथ एक सिपाही भी अंदर से गोली चला रहा था जिसे अफगानों ने अंदर आग लगाकर जला दिया पर फिर भी वह अपनी अंतिम सांस तक लड़ा और कई दुश्मनों को मार गिराया |

आख़री सिख गुरुमुख सिंह जो अब तक लड़ाई की पूरी सूचना दोनों किलो मे भेज रहा था, रेडीयो सिग्नल बंद कर अपनी अंतिम सांस तक लड़ा | इस तरह २१ सिख ने अफगानों को छ: घटे तक रोके रखा |

गुरुमुख सिंह ने सिग्नल से जरिए जो जानकारी दी थी, उसे लन्दन भेजा गया और दुनियाभर के अखबारों में खबर छपी | अंग्रेजो ने उनकी बहादुरी को सलामी दी और दो गुरुद्दवारे बनाए एक अमृतसर में और दूसरी फिरोजपुर में |

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