पानी में डूबी जिंदा लाशें | Alive Bodies Submerged in Water
रोमन सम्राटों की भांति ही तुर्की के प्राचीन सुल्तानों को भी इस बात का पूर्ण हक था कि वे अपने अनुयायियों में किसे जीवनदान दें और किसे सजाए मौत ।
इन अपमानित सुल्तानों के गुस्से की गाज अकसर और आसानी से रखैलों और वेश्याओं पर गिरती थी । उदाहरणार्थ, अब्दुल के समय में गैर वफादार और नाफरमान रखैलों को वजन दार बोरियों में जिंदा ही सील कर दिया जाता था । फिर इन बोरियों को महल की ऊंची दीवारों से नीचे बोसपोरस (सागर) में फेंक दिया जाता था । हालांकि इतनी ऊंचाई से गिरने पर पानी में उन रखैलों की मौत हो जाया करती थी, परंतु वे पूर्ण रूप से कभी गायब नहीं हुई ।
कई सालों बाद जब गोताखोर उन गहरी धाराओं का अध्ययन कर रहे थे, जोकि यूरोपीय तुर्की और एशियाई तुर्की को अलग करती हैं, उन्होंने पाया कि सालों पहले बोरों में सील कर फेंकी रखैलों की लाशें आज भी जीवित अवस्था जैसी दिख रही है । और तो और, ये सभी लाशें बोरों समेत सीधी और खड़ी अवस्था में पाई गई । गोताखोरों के वे पानी के अंदर की हलचल के साथ इस तरह खड़ी-खड़ी हिलती थीं कि मानो वे जिंदा हों ।
इसी तरह की एक और आश्चर्यजनक घटना चेकोस्लोवाकिया में भी घट चुकी है । घटना सन् १९५७ की है । गोताखोर चेकोस्लोवाकिया में ‘डेविल्स लेक’ नामक झील में एक लापता नाविक को ढूंढ़ रहे थे, जिसके बारे में शक था कि वह झील में गिर कर डूब गया है । उस कथित नाविक की लाश तो गोताखोरों को मिली ही, परंतु जिस बात ने सभी गोताखोरों को आश्चर्यचकित कर दिया था, वह वास्तव में एक खौफनाक मंजर था । गोताखोरों को झील के नीचे तली में एक पूरी-की-पूरी जर्मन बटालियन मिली । सभी फौजी अपनी पूर्ण वेशभूषा में सुसज्जित थे हालांकि वे सभी मृत थे, परंतु ऐसा लगता था कि वे जीवित हों और अभी आक्रमण कर देंगे । गोताखोरों के अनुसार कुछ लाशें हाथों में बंदूकें लिए ट्रक में सवार थीं, तो कुछ जवानों की लाशें अपने घोड़ों पर सवार सीधी खड़ी मिलीं और तो कुछ बाकायदा तोप गाड़ियों पर सवार । सब कुछ इतना सुव्यवस्थित एवं सजीव लग रहा था कि यकीन करना ही मुश्किल था कि वे सब मृत थे ।
बाद में जांच मे पता करने पर मालूम पड़ा कि उक्त लाशें उस जर्मन बटालियन की हैं, जो द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान रूस से लोहा ले रही थीं ।
जानकारी के अनुसार उक्त बटालियन १२ साल पहले रूसी सैनिकों से मोर्चा ले रही थीं। सर्दियों में जब सेना मोर्चे से लौट रही थी, तो रास्ते में उन्होंने ‘डेविल्स लेक’ नामक इस झील को पार करने के लिए इस पर कदम रखा । झील चूंकि सर्दियों में जम चुकी थी, फौजी अफसरों ने बजाए झील के चक्कर काटने के, इसे सीधा इसके ऊपर जमीं बर्फ पर से ही पार करने का निर्णय लिया । पर यह निर्णय ही उन सभी के लिए भयानक मौत का कारण बना । फौजी दस्ते के साजोसामान का वजन झील पर जमी बर्फ की परत उठा न सकी और वह दरक गई । नतीजा यह हुआ की पूरे-के-पूरे दस्ते ने जीवित ही जल समाधि ले ली । ये और बात थी कि गहरे और ठंडे पानी ने उन सभी की लाशों को बारह साल तक ठीक उसी स्थिति में बनाए रखा कि जिस स्थिति में वह जीवित अवस्था में थीं ।