सूरज जी की कहानी – ४ (मारवाड़ी मे) | Surajji kee kahani – 4 (In Marwari)

सूरज जी की कहानी

Suraj ji Ki Kahani

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रेणा देजो सूरज भगवान न बोल्या थे सगली सिष्ठी को पालन करो हो, कोई न भी भूलो हो कांई, सूरज भगवान बोल्या कीड़ी न कण हाथी न मन सगला को पालन करा प्रारब्ध में लिख्यो जान करां एक दिन रेणा देजी कीड़ी न डब्बी म बंद कर दो हाथी का पाडा न म्हेला म लार बांध दियो।

हवा आई घास को पूलो आर पाडा कन गिरग्यो। बरसार आगी कुंडो भरीज ग्यो| रेणा देजी टीकी का ढ़ हा टीको को बांड कोडी की डब्बी म पडग्यो । शाम का सूरज भगवान आया रेणा देजी पूच्छया महाराज सबकी खबर ले लीबी कांई सूरज भगवान बोल्या रेणा देजी कोई भी भूको कोनी रेणा देजी भागती भागती जार कीड़ी की डिब्बी लायी | सूरज भगवान बोल्या थाको डब्बी थे ही खोलो।

म्हे खोला तो भरोसो कोनी आयी रेणा देजी डब्बी खोलर देख्या तो कीड़ी का मुंडा म चाँवल ह। पाडा न जार देख्या तो हरो हरो घांस पडयो ह । पाणी को कुंडों भरयो ह । हाथ जोडर बोल्या महाराज एकी खबर थे क्यान लिवी सूरज भगवान बोल्या हवा आर पुलो(घास) आयग्यो बरसत भार कुंडो भरीजग्यो । थे ढौकी काढ हा ? थांका टीकों को चांवल पड्ग्यों। सूरज भगवान बेकी खबर लिवी ज्यान म्हाकी भी लीजो ।

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