वट सावित्री व्रत २०२१ (मारवाड़ी मे) | Vat Savitri Vrat

वट सावित्री व्रत २०२१ (मारवाड़ी मे)

Vat Savitri Vrat

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वट सावित्री की पूजा कब है

जेठ बदी अमावस क दिन वट सावित्री को बरत कर । इण दिन बड का झाड की पूजा करे । पूजा म सगली पूजा की सामग्री लेवणु । पूजा करती टेम कच्चो सूत बड के लपेटता जावे और १०८ फेरी (परिक्रमा) देवे ।

वट सावित्री की पूजा विधि


पूजा म सगली पूजा की सामग्री लेवणु । पूजा करती टेम कच्चो सूत बड के लपेटता जावे और १०८ फेरी (परिक्रमा) देवे । पूजा म फल, फुल, कुंकु मोली, हल्दी, अबीर, गुलाल, चांवल चढावे, भोग लगावे, धुप दीप सुं आरती करे । आरती करया पंछ कहाणी केवणो और सुननो । इको उद्यापन करने क टेम तीन दिन बरत करणो उद्यापन म हवन भी होवे तथा तीन जोडा न जिमावे | ब्राह्मण भोजन करे और बड की पूजा ऊपर लिखी तरह कर । कहाणी केवण, सुनण वाली तथा हुंकारो भरण वाली सगला न सुवाग मिले ।

वट सावित्री की कहानी | वट सावित्री व्रत कथा


एक राजा हो । बिक टाबर टुबर को कोनी हा । आपका गुरू न बोल्यो म्हार संतान कोनी कोई उपाय बतावो । गुरु कहयो थे सावित्री और ब्रह्माजी की तपस्या पूजा करो । राजा ब्यान ही करयो देवी सावित्री ऊण पर प्रसन्न होर प्रकट होर बोली हे राजा थार करमा म संतान सुख कोनी । फेर भी थरे एक कन्या होई जिणां को नाम तुं सावित्री राखीजे । राणी क नवां महिने एक कन्या को जन्म हुओं । राजा बिंको नाम सावित्री राख्यो ।

सावित्री दिन दुनी रात चोगुणी बढवा लागी । उम्र सारू राजा बींक वर ढूंडन निकल्यो पण कोई भी लडको मिल्यो कोनी। राजा न चिंता लागी। जणा बो आपकी बेटी न कहयो तं मंत्रीजी रे सागे जा और खुदरी पसंद रो वर ढूंढ़ । बा महला सुं निकली।

घणी फिरती फिरती एक जगल म आई । बठ एक राजा को बेटो कुटिया बनाय भगवान की पूजा म लाग्योडो हो । बो कुमार सावित्री न घणो चोखो लाग्यो, बा मोहित होयगी । बींक हर तरह सें बो जंच ग्यो । सावित्री पाछी जार अपना पिताजी न सारी बात बताई । राजा खोज करी जणा पतो चाल्यो कि बो राजा धुमसेन को राजकुमार सत्यवान हो । राजा मन मं सोच्यो कि राजा धुमसेन कन सगई को संदेश भेजा । जित्ता म नारदजी बीणा बजाता आया राजा नारदजी न सब समाचार बता दियो ।‌ नारदजी विचार म पडग्या । राजा पूछया नारदजी थे इत्ता विचार म क्यो पडग्या । घर घराणो तो ठीक हे ना ? नारदजी बोल्या राजा सत्यवान सब प्रकार सुं अच्छो है पण बीकी आयु घणी कम है बिल्कुल एक साल की हैं । राजा सावित्री न समझायो कि सत्यवान की उमर घणी थोडी हे तूं दूजो पति ढूंढ ले । सावित्री बोली चरित्रवान लड़की एक ही पति ढूंढ जो भी म्हारा भाग्य म होई जिको हुई । म्हे तो ईसू ही ब्याह करु । राजा राणी जंगल म गया और सावित्री को ब्याह सत्यवान सू धुमधाम सूं कर दियो खूब दान दायजो दियो ।

सावित्री बोली म्हे जंगल म ई धन को कांई करु । थे पाछा ले जावो । सावित्री आनंद सूं आपका पति के साथ सांसू सुसरा की सेवा करती रेवण लागगी । सारा घर को काम करती । सासू सुसरा आंधा हा बेंकी सेवा करती । दिन बित्या देखतां देखतां एक साल खतम होवण लाग्यो । सावित्री बोली जेठ सुदी तेरस सूं म्हे निगोठ ३ दिन का बरत करु । घर म सुख शांति और म्हारा सवाग क वास्त । सासू सुसरा तथास्तु बोल्या । पूर्णिमा को दिन आयो सावित्री न नारदजी का वचन याद आया । और सावित्री सत्यवान न बोली म्हे आज थांका साथ लकडी काटण जंगल म चालूं । सत्यवान बोल्यो कि म्हारा माता पिता की आज्ञा ले ले । सासू सुसरा बोल्या तू तीन दिन की भूकी हैं ओर कोई दिन जाइजे । बा बोली म्हे तो आज ही जाऊं ।

बा सत्यवान के साथ चली गयी । बी दिन काती सुद पुन्नम ही सत्यवान लकडया तोडी तोडर बांध लिवी । थोडा फल तोङ्या पोटली बांधो और सावित्री न बोल्यो आज म्हारो माथो घणो दुःख रयो हैं । म्हन थारी मांडी पर सोवण दे । सावित्री न नारदजी का वचन याद आ गया । सावित्री सत्यवान न आएकी मांडी पर सुवाण लियो । थोडो ही देर म यमराज भैंसा पर बैठकर एक तेजस्वी का रुप म आयो । एक डोरी डालकर सत्यवान का प्राण निकालकर जावण लाग्यो । सावित्र पूछी तू कूण ह? यमराज बोल्यो म्हे यमराज हूं । थारा पति सत्यवान का प्राण लेकर जा रयो हूं । सावित्री पति का साथ साथ जावण लागी । थोडी दूर जाता यमराज पाछा फिरकर देख्या पूछया तु लार लार क्यूं आवे ? सावित्री बोली मन म्हारा पति का प्राण चइजे । यमराज बोल्या सावित्री थन और जो भी होणू मांग पर पति का प्राण अब कोनी मिले । सावित्री बोली म्हन सासु सुसरा को राज़्य पाछो होणू यमराज बोल्यो तथास्तु । यमराज जावण लाग्यो पाछी सावित्री लार लार जावण लागी । यमराज पाछो फिरकर देखो पूछयो तू लार लार क्यूं आवे ? सावित्री बोली म्हन म्हारो पति होणू । यमराज बोल्या दूसरो वचन माँग ले पण थारा पति का गयोड प्राण पाछा कोनी मिले । सावित्री बोली म्हारा पिता न लड़को कोनी सो १०० लडका देवो म्हारा पिता को वंश चालणो । यमराज बोल्या तथास्तु ।

यमराज जावण लाग्या फेर सावित्री पीछे पीछे जाबा लागी। यमराज पाछा फिरकर देख्या तू लार क्युं आवे ? सावित्री बोली म्हन मारो पति पाछो होणू। यमराज बोल्या तीसरो वचन मांग ले पर पति का प्राण पाछा कोनी मिले सावित्री झ बोली म्हार १०० बेटा अर्जुन भीम क ज़्यान का होणू । यमराज बोल्या तथास्तु । यमराज क लार पाछी सावित्री जावण लागी । यमराज पाछा फिरकर देख्या ओर पूछया सावित्री तू पाछी लार लार क्यूं आव ? सावित्री बोली म्हारा पति न तो लेर जावो जणा म्हारा बेटा क्यान होई । यमराज बोल्या तू तो म्हन बंधन में बांध दी । थारा पति का प्राण पाछा देवु ! ओर यान बोलर यमराज यमलोक चलेग्या। सावित्री झाड क निच्चे पाछी आर देखतो सत्यवान बीको पति जाण नींद म सुं उठ बेठयो हो । आनंद क साथ बे दोनु सावित्री सत्यवान आपकी कुटिया म चलेग्यां बठिन सुं सत्यवान का देश का मन्त्री आयो ओर बोल्यो दुश्मन की सेना सब खतम होयगी हैं । आपण राज्य म चालो । म्हे रथ पालकी हाथी घोडा लेकर आयो हूं बे चारु जणा आनंद पूर्वक आपका राज्य म जाकर राज्य करण लागग्या । सावित्री का पिता क १०० लडका हुआ बठ को मन्त्री आकर सावित्री न बधाई दिवी । सावित्री क भी १०० लडका हुओ व आनंद क साथ राजपाट करण लागग्या ।

इक वास्त जेठ सुदी म तीन दिन (तेरस-चौदस- पुन्नम) लोग बट सावित्री को बरत आपका स्वाग क वास्त कर ।

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