महेश नवमी २०२३ | Mahesh Navami 2023

महेश नवमी की कथा (मारवाड़ी मे)

Mahesh Navami Ki Katha (In Marwari)

राज्यस्थान में खंडेला नाम को एक राज्य हो, बठका राजा को नाम खंडेलसिंह हो । राज म प्रजा बहुत सुखी ही चारों तरफ सुख शान्ति तथा संतोष हो । राजा धरमत्मा हो । प्रजा क सुख का नया नया उपाय करतो । परन्तू राजा क कोई भी संतान कोनी ही । इण वास्ते राजा मन म बहुत दूःखी रेंवतो । राजा न राजपुरोहित राय दी कि पुत्र क वास्ते कामेष्टी यज्ञ करणो । राजा बडा विद्वान ऋषि मुनि न बुला कर पूत्र कामेष्टि यज्ञ करयो ।

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यज्ञ भगवान का आशीर्वाद सुं राजा की चौबीस रानियां म सुं एक राणी पंचवती क सुंदर कुंवर को जन्म हुयो । कुंवर को नाम सुजान कुंवर राखयो । राजा उणा की कुंडली बनवायो ज्योतिषी देखकर कहयो महाराज आपरो कुंवर बहुत यशस्वी और पराक्रमी होसी । परंतु एक बात को ध्यान राखीजो इण कुमार न बावीस साल की उम्र तक उत्तर दिशा म जाव मत देईजो ।

सुजान कुंवर छोटापण म ही सारी विद्या म होशियार होयग्यो । एक बार बी राज्य म जैंन मुनि आया, सुजान कुंवर बेंक धर्म की ख्याति सुन बहुत प्रभावित हुयो और बे मुनि सुं जैन धर्म की दीक्षा ले ली । राजा क कारण प्रजा म भी जैन धर्म फैलण लाग्यो चारु तरफ जैन धर्म को बोल बालो होयग्यो। सगला मंदीर जैन मंदीरां म बदलगा । शिव मंदीर, वैष्णव मंदिर सब जैन मंदीर बनग्या। एक बार राजकुंवर अपना बहत्तर उमराव के सागे जंगल म घूमण न गयो । एकाएक राज कुंवर उत्तर दिशा की तरफ आपको घोडो मोडयो, सगला उमराव बीन बरजण लाग्या परन्तु कुमार जिद पकडग्यो, और उत्तर दिशा आपरो घोडो दौडा दियो । बीक लारे उमराव भी अपना घोड़ा दौडाया । काफी दूर आवण के बाद बठे एक सुरज कुण्ड क कन छः ऋषि यज्ञ कर रहया था भगवान की स्तूती का मंत्र बोल रहया था, जंगल म मंत्र की आवाज जोर जोर सुं गुंज रही थी राजकुंवर न ओ देखकर गुस्सो आयग्यो । बो आपका उमराव सुं केवण लाग्यो म्हार राज्य म ओ यज्ञ क्यान होवे इणाने विध्वंस कर दो । उमराव बिकी बात सुनकर यज्ञ विध्वंस करबा लाग्या। ऋषियां न भी क्रोध आयग्यो वे ब्यान श्राप दे दिया कि थे सगला का सगला पत्थर बन जाओ ।

बठीन जणा राजकुंवर और उमराव महला म पहुंचया कोनी जणा राजा न चिंता हुई बो खोज करायो जना बिन सारी हकीकत मालुम पड़ी । ओ समाचार जाणतां ही राजा का प्राण निकलग्या, राजा की राणी सति होयगी। जण राज कुंवर की पत्नी चन्द्रावती संगला उमराव की लुगायां क साथे वन में सूरज कुण्ड कन आर ऋषि मुनियां सुं प्रार्थना करण लागी। जणा ऋषि मुनि उणाने कहयों कि थे पहली थोडी दूर पर गुफा में भगवान शिव जी (महेश) की अराधना करो बे ही ओ श्राप सुं छुट कारो दिरावेला । बे सगली लुगाया गुफा में भगवान शिव और पार्वती की अराधना करी, मां पार्वती बेंसु खश होर बेन भाग्यवती और पुत्रवती होवण रो आशीर्वाद दियो, परन्तु बे लुगायां मां पार्वतीजी न सगली बात बतायी जणा मां पार्वतीजी बे सब पत्थर की मूर्तियां पर पाणी को छिडको दियो और बे सगला का सगला पाछा मनुष्य बठा गया । संगला मोटयार आपरी लुगायां के सागे भगवान शिव पार्वती क चरणां म पड गया । भगवान शिव ब्यान आशीर्वाद दियो और कहयो कि थे अब क्षत्रिय वर्ग न छोडकर वैश्य वर्ण न अगीकार करया ।

पण बे लोग आपकी लूगायां न छोडर जावण लाग्या क्युकि वे तो क्षत्राणी थी । बे लुगायां पाछी मां पार्वतांजी सुं विनती करी जणा बे मोटयारां न बुलार समझाया और केवण लाग्या कि थे म्हारी परिक्रमा करो लुगाई और मोटयार परिक्रमा करण लाग्या तो बेका गन्जोडा आपस म आपही जुडग्या । बी दिन सुं महेश्वरीया म ब्याव क टेम फेरा हुआ करे । आधटना हुई बी दिन नवमी थी, और ए सगला उमराव वैश्य वर्ण का होर भगवान शिव की संतान कहलाया, इण वास्ते महेश नवमी न मनावे इण दिन सगला महेश्वरी भगवान शिव की पूजा अर्चना करे और उच्छव मनावे ।

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