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विनायक जी की कथा – ४ (मारवाड़ी मे) | Vinayakjee kee kahaniya – 4 (In Marwari)

विनायक जी की कथा (मारवाड़ी मे)

Vinayak Ji Ki Katha (In Marwari)

विनायक जी की व्रत कथा, विनायक जी की कहानी, विनायक जी की कथा , विनायक जी महाराज की कहानी

एक भाई बेन हा । भाई गरीब हो । बेन पेसा वाली ही। वेन क अठ बेटी को व्याव मंडयो । भाई न पत्रिका अथवा बुलावो की भी दियो कोनी। भाई न मालुम हुयो म्हारो बेन क अठ म्हारौ भाणजी को ब्याव हे। भाई गांव म लुगाया न बोल्यो जणा बे शक्ति सारु चंनखी, बिछुड़ी साडी पोलको जिन ज्याण बण्यो बे कन्या क लिये दिया | बो लेकर बेन क अठ गयो । गांव म जावता ही दिवर-जिठाण्यां चो को कि भाजीजी थांका भाई आया है । बेन बोली क्यान आया है | दिवर-जिठाण्या बोली फाटी पागडी ह, फाटी पगरखी ह, फाटडयो कुडतो ह,फाटौ धोतो ह | बेन बोली म्हारा ब्यायीजी दुकान म बेठा ह म्हन शरम आव भाई न बोलो पिछाडी का दरवाजा सु आवे । भाई आवता ही बेन भाई ने एक कमरा म बंद कर दी। बार भाणजी को ब्याव हुये हो, बाजा-गाजा बाज रया हा, जीमण-जुटण हो रया ह,भाई न लाइ न कोई पाणी पावण भी राजी कोनी | एक भाणजा की बहु न दया आयी ब दरवाजो खोल दियो ओर मांड पायो । भाई दरवाजों खोलतांई बठासु भागयो। भूख प्यास से चककर आबा लागगी रास्ता में विनायकजी को एक मंदिर हो बीम जाकर पढग्यो। खू्ब रोयो आज म्हारी गरीबी की वजह सु म्हारी बेन म्हन दुतकार दिया। घर जांता ही म्हारी लुगाई पुछौ कि ब्याह सु काई मिठाई लायो म्ह काई जवाब देबु । गणेशजी बोल्या म्हारा बगीचा सु काकडी मतीरा तोडर टाबर क वास्त लेजा । काकडी मतीरा तोडर झोलो भर लियो । भोर घर गयो । घर जाबता टावर बोल्या बाबूजी बुवा क अठसं थे म्हाक ताई कांई लाया ? झोलो खोलता ई सौना की दडया की दडया हो गयी | काकडी मतीरा बंदार ताई हीरा मोती निकल्पा लुगाई बोली थे बाइजी क अठासू इत्तो माल क्यूं लाया बाईजी म्हान भोत दियो। धणी को जवाब दियो कोनी | भगवान विनायक जी की कृपा सु सब आनंद होगस्यो । गेणो घडा लियो | मकान बनवा लियो । व्यापार धंधो खुब चालण लागया | भोजाई बोली बाइजी बनुलार लावो ४ दिन राखस्यां जणाबोले गयों |

नवा कपडा, जूता पेरण हा | रथ में बेठर गयो । दिवर-जिठाणया बोली भाभीजी थाका भाई आवा है। बेन पुछी म्हारा भाई क्यान आया है | दिवर-जिठाण्या बोली रथ म बेठर खूब थाठ-बाट सु आया है बेन बोली म्हारा भाई न बोलो दुकान म सु आव । म्हारा देवर जेठ देखी। भाए गयो। बेन स्वागत करयो। भाई बोलयो बाई म्ह थन लेवण आयो हु | बेन बोली म्हन भी भोत दिन हो गया म्हे चालु । बेन न लेर आयो | भाई भोजाई बेन को खूब आदर करथो। जो चीज चइ्ज जीकी बेन न करार दिया | बेन बोली भाई महार जूत्या होणी। भाई मोर न बुलार बोल्यो म्हारी बेन क इशी जुत्या बणावो मूड बोल जिशी। बेन न खूब देयर रवाना करयो । पण बे जूत्या आई कोनी बेन रवाना होबा लागौ। मोची जूत्या लेर आयो। बेन पेरतां जूत्या बोली निर्धन भाई पैसा वाली बेन, बिनायकजी की बाडी नई होती तो कई करती ए बाई ? जणा लगाई बोली वा काई आवाज आ रही है। धणी बोल्यो दिनुका की टेम ह की जीव जिनाबर बोलता होसी। गाडा वाला न बोल्यो जल्दी हांको । बेन जांवता ही लुगाई जिद करर बेठगी कि जूत्यां काई बोली ? धणी बोल्यो कि म्हन तो बेन दो दिन को भूको काडयो कमरा म बंद कर दियो भाणजा की बहु आयी खोल्यो जणा म्हे आयो ओर विनायकजी क शरण आयो। विनायकजी की कृपा सु सब आनंद हुया है। सगली बात लुगाई न बताई | लुगाई बोली म्हन पेलो मालुम होती तो म्हे देवी कोनी। म्हारो पाछो सगलो माल लेकर आवो| धणी बोल्यो सवासणी की आशीष सूं आपांन विनायकजी दिया है । ब्राम्हण भूको नहीं काडती तो म्हे विनायकजी क बिंदरकेन जावंतो । विनायकजी सब कुछ आनंद करया है।

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