धर्मराज जी की कहानी | धर्मराज जी का उद्यापन | Dharamraj Ki Kahani

धर्मराज जी की कहानी | धर्मराज जी का उद्यापन | Dharamraj Ki Kahani

एक डोकरी ही बींक घणो ही धन हो । पण बा धरम पुण्य की कोनी करती । मन की काठी ही । एक दूजी डोकरी बींका पाडोस म रेवती वा रोज गंगा स्नान करती तुलसी, पीपल सींचती भगवान की पूजा करती कहाणी सुनती भगवान क भोग लगाती अतिथि न जीमाती । वा धरम पुण्य खूबर करती पण धरमराजजी को की कोनी करयो । भगवान का घर को बुलावो आयो । धरमराजजी न बोली म्हाराज म्हार वास्त दरवाजा खोलो म्हारो लेखो चोखो करो । धरमराजजी बोल्या तू वास बरत, धरम पुण्य तीरथ करी पर म्हारा नाम को की भी कोनी करी। डोकरी बोली महाराज म्हनें मालुम कोनी हो ।

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डोकरी बोली म्हनें पाछी भेजो । धरमराजजी बोल्या अब आयोडी ही है पाछी कांई भेजा डोकरी बोली थे पाछी कोनी भेजो तो लोगां न क्यान मालुम होव ? धरमराजजी डोकरी न पाछी भेज दिया लोग बोल्या अरे डोकरी मरयोडी पाछी जींवती होइगो बा लोगा न बोली म्हने ६ दिन क वास्त धरमराजजी पाछी भेज्या है म्हन धरमराजजी को उद्यापन करणू है ।

धर्मराज जी का उद्यापन | Dharamraj Ka Udyapan


६ महिना नेम सूं धरमराजजी की कहाणी सुन णु । नहीं सज आवे तो ६ दिन जरुर सुणणू । ६ दिन भी नहीं सज आव तो एक दिन जरुर सुणणू । ६ मूंगा, ६ मोती, ६ सेर जवारी, सोना की धरमराजजी की मूर्ति ,चांदी को दरवाजो, चांदी की सीढ़ियां,चांदी को साठयो, लुगाई मोटयार का कपडा छतरी पगरक्या [लुगाई मोटयार की चपला] बांस की छडी ब्राह्मण भोजन कराणू । ई मुजब सूं वा डोकरी धरमराजजी को उद्यापन करयो । भगवान का घर को विमान ६ दिन पछ आयो । विमान म बैठर डोकरी बैकुण्ठ चली गयी जांवता ही धरमराजजी दरवाजा खोल दिया। बींको लेखो चोखो कर दीयो । बीन विमान भेज्यो ज्यान सबन भेजीज्यो ।

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