रत्नों का चुनाव कैसे करे राशि रत्न | मणि

How to Choose Gems | Rashi Ratna 


अनिष्ट ग्रहों के प्रभाव को कम करने के लिए या जिस ग्रह का प्रभाव कम पड़ रहा हो उसमें वृद्धि करने के लिए उस ग्रह के रत्न को धारण करने का परामर्श ज्योतिषी देते हैं । एक साथ कौन-कौन से रत्न पहनने चाहिए और कौन-कौन से रत्न नहीं पहनने चाहिए। इस बारे में ज्योतिषियों की राय है कि,

माणिक्य के साथ-नीलम, गोमेद, लहसुनिया वर्जित हैं।

मोती के साथ - हीरा, पन्ना, नीलम, गोमेद, लहसुनिया वर्जित हैं।

मूंगा के साथ - पत्ना, हीरा, गोमेद, लहसुनिया वर्जित हैं ।

पन्ना के साथ - मूंगा, मोती वर्जित हैं ।

पुखराज के साथ - हीरा, नीलम, गोमेद वर्जित हैं।

हीरे के साथ - माणिक्य, मोती, मूंगा, पुखराज वर्जित हैं।

नीलम के साथ - माणिक्य, मोती, पुखराज वर्जित हैं ।

गोमेद के साथ - माणिक्य, मूंगा, पुखराज वर्जित हैं।

लहसुनिया के साथ - माणिक्य, मूंगा, पुखराज,मोती वर्जित हैं।

 

सूर्य को शक्तिशाली बनाने में माणिक्य का परामर्श दिया जाता है । ३ रत्ती के माणिक को स्वर्ण की अंगूठी में, अनामिका अंगुली में रविवार के दिन पुष्ययोग में धारण करना चाहिए ।

चंद्र को मोती पहनने से शक्तिशाली बनाया जा सकता है जो २, ४ या ६ रत्ती का चांदी की अंगूठी में शुक्ल-पक्ष सोमवार रोहिणी नक्षत्र में धारण करना चाहिए ।

 

मंगल को शक्तिशाली बनाने के लिए मूंगे को सोने की अंगूठी में ५ रत्ती से बड़ा मंगलवार को अनुराधा नक्षत्र में सूर्योदय से १ घंटे बाद तक के समय में पहनना चाहिए ।

 

बुध ग्रह का प्रधान रत्न पन्ना होता है। जो अधिकांश रूप में पांच रंगों में पाया जाता है,ल्के हरे पानी के रंग जैसा, तोते के पंखों के समान रंगवाला, सिरस के फूल के रंग के समान, सेडुल फूल के समान रंगवाला, मयूर पंख के समान रंगवाला। इसमें अंतिम मयूर पंख के समान रंगवाला श्रेष्ठ माना जाता है । किंतु यह चमकीला और पारदर्शी होना चाहिए । कम-से-कम ६ रत्ती वजन पन्ना का सबसे छोटी अंगुली में प्लेटिनम या सोने की अंगूठी में बुधवार को प्रातःकाल उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में धारण करना चाहिए।

 

गुरु (बृहस्पति) के लिए पुखराज ५, ,९ या ११ रत्ती का सोने की अंगूठी में तर्जनी अंगुली में गुरु-पुष्य योग में सायं समय धारण करने का परामर्श ग्रंथों में उपलब्ध होता है।

 

शुक्र ग्रह को शक्तिशाली बनाने के लिए हीरा (कम-से-कम २ कैरेट का) मृगशिरा नक्षत्र में बीच की अंगुली में धारण करना चाहिए ।

 

शनि ग्रह की शांति के लिए नीलम ३, , ७ या १० रत्ती का मध्यमा अंगुली में शनिवार  को श्रवण नक्षत्र में पंचधातु की अंगूठी में धारण करना चाहिए ।

राहु के लिए ६ रत्ती का गोमेद उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में बुधवार या शनिवार को धारण करना चाहिए । इसे पंचधातु में तथा मध्यमा अंगुली में पहनना चाहिए ।

 

केतु के लिए ६ रत्ती का लहसुनिया गुरु पुष्य योग में गुरुवार के दिन सूर्योदय से पूर्व धारण करना चाहिए । इसे भी पंचधातु में तथा मध्यमा में पहनना चाहिए ।

          

जन्म-तारीख के अनुसार रत्नों का चुनाव :

१५ अप्रैल से १४ मई

मेष

मूंगा

१५ मई से १४ जून

वृषभ

हीरा

१५ जून से १४ जुलाई

मिथुन

पन्ना

१५ जुलाई से १४ अगस्त

कर्क

मोती

१५ अगस्त से १४ सितम्बर

सिंह

माणिक्य

१५ सितम्बर से १४ अक्तूबर

कन्या

पन्ना

१५ अक्तूबर से १४ नवंबर

तुला

हीरा

१५ नवम्बर से १४ दिसम्बर

वृश्चिक

मूंगा

१५ दिसम्बर से १४ जनवरी

धनु

पीला पुखराज

१५ जनवरी से १४ फरवरी

मकर

नीलम

१५ फरवरी से १४ मार्च

कुंभ

गोमेद

१५ मार्च से १४ अप्रैल

मीन

लहसुनिया


जन्मांक के अनुसार रत्नों का चुनाव :

जन्म तारीख

ग्रह स्वामी

उपयुक्त रत्न

, १०, १९, २८

सूर्य

माणिक्य

, ११, २०, २९

चंद्रमा

मोती

, १२, २१, ३०

बृहस्पति

पीला पुखराज

, १३, २२, ३१

यूरेनस

गोमेद

, १४, २३

बुध

न्ना

, १५, २४

शुक्र

हीरा

, १६, २५

नेप्च्यून

लहसुनिया

, १७, २६

शनि

नीलम

, १८, २७

मंगल

मूंगा

                                

रत्नों के औषधीय उपचार

हजारों वर्षों से वैद्य रत्नो की भस्म और हकीम रत्नों की षिष्टि प्रयोग में ला रहे हैं। माणिक्य भस्म शरीर में उष्णता और जलन दूर करती है । यह रक्तवर्धक और वायुनाशक है। उदर शूल, चक्षुरोग और कोष्ठबद्धता में भी इसका प्रयोग होता है और इसकी भस्म नपुंसकता को नष्ट करती है।

कैल्शियम की कमी के कारण उत्पन्न रोगों में मोती बहुत लाभकारी सिद्ध होता है। मुक्ता भस्म से क्षयरोग, पुराना ज्वर, खांसी, श्वास-कष्ट, रक्त-चाप, हृदयरोग में लाभ मिलता है ।

मुंगे को केवड़े में घिसकर गर्भवती के पेट पर लेप लगाने से गिरता हुआ गर्भ रुक जाता है । मूंगे को गुलाब जल में बारीक पीसकर छाया में सुखाकर शहद के साथ सेवन करने से शरीर पुष्ट बनता है । खांसी, अग्निमांद्य, पांडुरोग की उत्कृष्ट औषधि है।

न्ना गुलाब जल या केवड़े के जल में घोटकर उपयोग में आता है । यह मूत्र रोग, रक्त व्याधि और हृदय रोग में लाभदायक है। पन्ने की भस्म ठंडी मेदवर्धक है, भूख बढ़ाती है, दमा, मिचली, वमन, अजीर्ण, बवासीर, पांडु रोग में लाभदायक है ।

श्वेत पुखराज को गुलाबजल या केवड़े में २५ दिन तक घोटा जाए और जब यह काजल की तरह पिस जाए तो इसे छाया में सुखा लें । यह पीलिया, आमवात, खांसी, श्वास कष्ट, बवासीर आदि रोगों में लाभकारी सिद्ध होता है। श्वेत पुखराज की भस्म विष और विषाक्त कीटाणुओं की क्रिया को नष्ट करती है।

हीरे की भस्म से क्षयरोग, जलोदर, मधुमेह, भगंदर, रक्ताल्पता, सूजन आदि रोग दूर होते हैं । हीरे में वीर्य बढ़ाने की शक्ति है । पांडु, जलोदर, नपुंसकता रोगों में विशेष लाभकारी  सिद्ध होती है। हीरे में विशेष गुण भी यह है कि रोगी यदि जीवन की अंतिम सांसें ले रहा हो, ऐसी अवस्था में हीरे की भस्म की एक खुराक से चैतन्यता आ जाती है ।              

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